हां!
हम हैं
इंसान
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कितनी
सरहदों का सामना हम करें जब
कहेंगे,
बस!
अब और
नहीं
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कितनी
जंग लड़ें और मरें, जब
कहेंगे,
नहीं!
एक भी और
नहीं!
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ये दास्तां
हवा में है बयां,
हवा
में है ये दास्तां बयां,
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कौन से
सच सर चढ़े हैं सदीओं से
आखिर
कब जमीं से मिलेंगे?
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कब तक
जुल्म में लाखों घुटते रहेंगे
कब कहेंगे हम हैं आज़ाद?
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किस किस
से ओ कब तक हम मुंह फेरते
रहेंगे,
जैसे
कुछ हुआ ही नहीं?
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ये दास्तां
हवा में है बयां,
हवा
में है ये दास्तां बयां,
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कितनी
बार कोई नज़र उठाते रहें
के
आ जाए नज़र आसमाँ
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कितने
आंसूं बरसे जब कभी कानों पर,
जूं रेंग
जाए
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कितनी
मौतें और खबरों के बाद,
"बस!
बहुत हुआ"
कह पाएं?
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ये दास्तां
हवा में है बयां,
हवा
में है ये दास्तां बयां!
कौन से आईनों में हम देखें के
तस्वीर पुरी जान पाएं?
कितने बचपन बच्चों के मजदूरी से मिटें,
और कब वो खेल पाएंगे?
कितने बहुजन, जाती की ज़ंजीरों से छ्टेंगे, |
हवा में है ये दास्तां बयां!!
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