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कशमकश कश्मीरियाँ

  Kashmir

वक्त के बाद

वक्त सही है साथ नहीं साथ सही है वक्त नहीं, वो ख़ास लम्हा हो, ये खत्म होती तलाश नहीं! जो है पास वो क्या है उसकी क्या जगह है? नज़र भटक रही उस मोड़, शायद बेहतर सुबह है? जो दरारें हैं वही आप हैं, मरम्मत करना बेकार है! कोई लम्हा, कोई ख़ास, एक फ़रेब है ये एहसास!!  आप जब आप होते हैं, वक्त के बाद होते हैं, दिलों के साथ आने के मा'क़ूल हालात होते हैं! (मा'क़ूल - appropriate)  लगा दिए हैं पैमाने ओ ताउम्र हम नाप रहे हैं, दुनिया के कहे पर, कम, ख़ुद को आंक रहे हैं! (ताउम्र -whole life) वक्त के बाद होइए  ज़रा आजाद होइए, इंतजार ज़ंजीर है, आप बस आप होइए!! (created from the text on a insta status)  right person, wrong time right person, wrong time if it's right, you won't know. because you're too busy looking for the right person, too busy looking for the right time and the perfect moment. And while you're stuck searching, ironically you are losing what you have already found. Losing a piece of who you are because you're tryin to fix the cracks in your life with a person, a m

आज़–कल

आज़ की सोच फिर कल की बात करते हैं, गुजरते सच को भला क्यों हालात करते हैं? हदें सारी सिमट गई हैं आज तंग यकीनी में, हमराय न हुए तो कातिल जज़्बात करते हैं! मोहब्बत यूं भी गरीब है तमाम सरहदों से और फिर ये बाजार जो हालात करते हैं! यूं नहीं के इंसानियत बचीं नहीं है कहीं, पर बस अपने ही अपनों से मुलाकात करते हैं! तालीम सारी मुस्तैद है सच सिखाने को, वो शागिर्द कहां जो अब सवालात करते हैं! कातिल हैं मेरे वो जो अब मुंसिफ बने हैं, और कहते हैं क्यों खुद अपनी वकालात करते हैं! फांसले बढ़ रहे हैं दो सिरों के मुसलसल, ताकत वाले बात भी अब बलात् करते हैं! हमदिली की बात अब डिज़ाइन थिंकिंग है, बेचने को बात है, सो ताल्लुकात करते हैं! दीवारें चुनवा दीं हैं रास्तों में किसानों के, सुनने की इल्तजा पर घूंसा–लात करते हैं! [तालीम - education; शागिर्द - student; मुसलसल -continuous; हमदिली- Empathy ;  बलात्  - by force ; इल्तजा - request] 

हमदिली की कश्मकश!

नफ़रत के साथ प्यार भी कर लेते हैं, यूं हर किसी को इंसान कर लेते हैं! गुस्सा सर चढ़ जाए तो कत्ल हैं आपका, पर दिल से गुजरे तो सबर कर लेते हैं! बारीकियों से ताल्लुक कुछ ऐसा है, न दिखती बात को नजर कर लेते हैं! हद से बढ़कर रम जाते हैं कुछ ऐसे, आपकी कोशिशों को असर कर लेते हैं! मानते हैं उस्तादी आपकी, हमारी, पर फिर क्यों खुद को कम कर लेते हैं? मायूसी बहुत है, दुनिया से, हालात से, चलिए फिर कोशिश बदल कर लेते हैं! एक हम है जो कोशिशों के काफ़िर हैं, एक वो जो इरादों में कसर कर लेते हैं! मुश्किल बड़ी हो तो सर कर लेते हैं, छोटी छोटी बातें कहर कर लेते हैं! थक गए हैं हम(सफर) से, मजबूरी में साथ खुद का दे, सबर कर लेते हैं!

हम काफ़िर!

हम काफ़िर हैं झूठे यकीनों के, दीवारों में चुनने के काबिल हैं क्या? अकीदत और इबादत के गैर हैं हम, आपकी दुआओं से खैर हैं क्या? सजदा करें इतनी अना नहीं हममें,  ख़ाक से पूछिए ख़ाकसार है क्या? अपने गुनाहों को गंगा नहीं करते, जो एहसास न हो वो वजन है क्या? "जय श्री" जोश में कत्ल कर दें कोई आप ऐसे कोई अवतार हैं क्या? भक्त भीड़ बन गए हैं तमाशों की, सारे अकेलों की कहीं भीड़ है क्या? हम मुसाफिर हैं तलाश तख़ल्लुस है, ज़िंदगी मज़हब के वास्ते है क्या?

गुनााह कबूल

अपने ही इरादों की हम भूल हैं, जो गुनाह कहिए हमें कबूल हैं! खून उबलता ही नहीं है, चाहे जो, जज़्बात हमारे बड़े नामाकूल हैं! दम तोड़ रहे हैं तमाम सच हरदिन, और हम बस बातों के फिजूल हैं! दर्द सारे के सारे बेअसर हो चले हैं, और कहने को हम बड़े "कूल" हैं! आम कत्ल हैं और ख़ास जेल में, आज़ाद हमारे मध्यमवर्गी उसूल हैं! फर्क पड़ता, भवें तनती ओ सांस तेज, फिर हम पूरे निक्कमेपन के वसूल हैं! आबोहवा में जहर घोलती है दुनिया, और हम 'एक' बदलने में मशगूल हैं!

इस दौर!

लाख़ ढूंढे मिलने वाले नहीं, कितने गिरे हैं कुछ इल्म नहीं! कहने और करने में फर्क जो है, ये फांसले कम होने वाले नहीं! बहुत सर चढ़ाया है तारीखों में, गिरेंगे अब, उतरने वाले नहीं! दुश्मनी जो रास आने लगी है, ये नशे, अब जाने वाले नहीं! जो सामने है वही सारा सच है, ये नया कुछ जानने वाले नहीं! नफरतों ने आबाद किया है, तुम बर्बादी अपनी मानने वाले नहीं! अपने ही हैं जो बहक गए हैं, सब वो अब अपना मानने वाले नहीं! उम्र का तकाज़ा देने वाले सब,  मानते हैं, अब जानने वाले नहीं!

बहुत दूर की बात!

इंसानियत का दूरियों से गहरा नाता है, मणिपुर दूर है, गाज़ा नजर नहीं आता!    औरत की इज्ज़त बहुत जरूरी होती है, पर जंग की अपनी मजबूरी होती है!! बच्चे वैसे तो सारे ही भगवान हैं, पर गाज़ा में तो सब "मुस्लमान" हैं? आसमान से खाना, खाने पर बमबारी, नफ़रत हद पार तो बन गई बीमारी! मणिपुर और गाज़ा दोनो ही ख़बर नहीं हैं, कब्र हैं तमाम किसको फिकर नहीं है! सच नंगा है ऊपर से मर्दानगी का धंधा है, इज्ज़त लूट रही है और बाकी हाल चंगा है! शराफत का इस दौर में न करो तकाज़ा आप के कोई नहीं जो निकला जनाजा! खबरें वो होती हैं जो सच बताएं, सच वो है जो सरकार बताएं! सरकार शातिर है, झूठ बोलती है, क्या है आज की ताजा खबर ? बताएं ?

पनपने के सच–बुढ़ापा

बचपन पनपता है, जवानी मचलती है बुढ़ापा ठहरता है, बुढ़ापा बुफे है उम्र का, इसमें सब शामिल है, बचपन की पुकार जवानी का जोश, गर आपको हो होश! समंदर है ये, लहरें जिसकी जवानी है, बूंद बूंद  बचपन की रवानी! बुढ़ापा, थकान नहीं है, रस्तों के मोड़ की पहचान है, ये आपके सोच का सच नहीं सोच, दुनिया की जागीर है, सही–गलत की जंजीर, अगर यूं बूढ़े हुए तो आप उम्र का शिकार हैं! बुढ़ापा साहिल है, तटस्थ लहरों को हर हाल भिगोने वाला, जोश जवानी का लिए जो आई उसे यकीन दिलाने वाला हां, तुमने डुबा दिया बुढ़ापा; वो जो न तौले, न मोले, न बोले, मंजूर करे, हर उम्र, हर हाल "हां, तुम चलते रहो" बचपन है तो बचे रहो, जवानी है तो बहो! बुढ़ापा भी मंज़िल नहीं है, एक उम्र का अंजाम, हां, जाम जरूर है, अगर खुद को मान लें, मान दें, सामान नहीं है जो उठाना है, बस एक और मोड़ है, हंसते हंसाते गुजर जाना है!

पनपने के सच – जवानी

बचपन पनपता है, जवानी मचलती है बुढ़ापा ठहरता है, जवानी में दिल बहुत मचलता है, मर्जी के रास्ते चलता है, अक्सर पिघलता है, अपने बस में है, पर बस कहां चलता है? जवानी जोश है, एक पुकार है, जिंदाबाद! जवानी तूफान है, कहां कोई थाम है, मुश्किल आसान है! बेलगाम है, एक ललक है, और लालच भी, उस हर ताकत का, जो लगाम लिए खड़ा है, क्योंकि उसे तूफान चाहिए, काम अपना आसान चाहिए! दुनिया को तूफान चाहिए, पर अपने लिए आसान चाहिए, इसलिए बना दिया है, उम्र बढ़ने को एक जंग, हमेशा चलने वाली लड़ाई, पहला नंबर आओ, पीछे रह गए तो और जोर लगाओ, आगे निकल गए तो, किसी की शाबाशी के गुलाम बन जाओ! लगे हैं सब नंबर वन होने में, ज्यादा हैं आप किसी के कम होने में? जवानी, खर्च होने की चीज़ नहीं तो गौर करिए, कोई आपको कमा तो नहीं रहा? नंबर – एक दो तीन गिनती बना तो नहीं रहा? बेलगाम रहिए, बेनाम सही, नाम होगा तो बिक जायेंगे, कामयाबी कांटा है मचली बाजार का, जवानी मचलती है, कैसे खुद को बचाएंगे?

पनपने के सच - बचपन

बचपन पनपता है, जवानी मचलती है, बुढापा ठहरता है! चलो बचपन पर लौट चलें, जम कर, जोश से, फूलें–फलें! अपना ही रास्ता बनें, बुनें! खिलना है, खुलना है, तमाम सच बदलना है हाल के, हालात के, उनसे जुड़े सवालात के, नज़रअंदाज़ जज़्बात के! पूछ लें वो सब सवाल जो डरे हुए है, क्योंकि बड़ों के जमीर मरे हुए हैं! उठा लें वो कदम जिसके नीचे की जमीन मालूम नहीं है, रास्ते ऐसे ही बनते हैं! आ जाएं साथ,  वही है बचपन की बात, कहां उसमें, दूसरे को कम करती मज़हब और जात? पनपना, फक्त जिंदा रहना नहीं है, बचपन की चाल चलिए खिलिए, खुलिए,  मिलिए हर पल से ऐसे जैसे ये पहली बार है, खेलिए, नौसिखिए बन, कुछ गलत नहीं, सब सीखने के नुस्खे हैं! दिल बचपन करिए, ज़िंदगी में जरा सचपन कीजिए! कोई द्वेष नहीं, घृणा नहीं, सब खेल हैं, मिलने के, दुनिया से,  उमंग से, चहकते हुए, साथ को बहकते हुए, जब तक है, तब है सौ फीसदी ! फिर कुछ और, या कुछ नहीं! न अपेक्षा , न उपेक्षा चलिए बचपन चलें?

इश्क़ समझ!

इश्क़ इज़हार है, समझदा र को इशारा नहीं, चलते बनिये जो उनको गवारा नहीं, खेलते खुजाते रहें, जिसे ज़ेब में रख्खा तमाशा नहीं,   इश्क़ जज़्बात है, मर्दानगी त्योहार नहीं, और बांट दे वो खुशी से  "हां", उनकी, दिवाली का खील बताशा नहीं! हंसकर बात करते हैं, ये हस्ती है उनकी, खुद को पसंद करते हैं, मुगालते हैं आपके, जो सोचे, आप पर मरते हैं!! इश्क़ साथ है,  दो लोगों की बात है, मिल्कियत नहीं, कोई मेरा हो गया, मान लेना, रिश्तों की नज़ाकत नहीं! इश्क़ सफ़र है, हमसफ़र सी बात है, मंज़िल नहीं, हासिल हो गया, बात ख़त्म, आशिक़ी की तर्ज नहीं! इश्क़ इज़हार है, इंकार है, इसरार है, इम्कान है, आसान नहीं, बात चलती रहे, हर सूरत जज़्बातों का मर्ज़ नहीं!