बचपन पनपता है,
जवानी मचलती है,
बुढापा ठहरता है!
चलो बचपन पर लौट चलें,
जम कर, जोश से,
फूलें–फलें!
अपना ही रास्ता बनें,
बुनें!
जवानी मचलती है,
बुढापा ठहरता है!
चलो बचपन पर लौट चलें,
जम कर, जोश से,
फूलें–फलें!
अपना ही रास्ता बनें,
बुनें!
खिलना है, खुलना है,
तमाम सच बदलना है
हाल के, हालात के,
उनसे जुड़े सवालात के,
नज़रअंदाज़ जज़्बात के!
तमाम सच बदलना है
हाल के, हालात के,
उनसे जुड़े सवालात के,
नज़रअंदाज़ जज़्बात के!
पूछ लें वो सब सवाल
जो डरे हुए है, क्योंकि
बड़ों के जमीर
मरे हुए हैं!
नीचे की जमीन मालूम नहीं है,
रास्ते ऐसे ही बनते हैं!
आ जाएं साथ,
वही है बचपन की बात,
कहां उसमें,
दूसरे को कम करती
मज़हब और जात?
फक्त जिंदा रहना नहीं है,
बचपन की चाल चलिए
खिलिए, खुलिए,
मिलिए हर पल से
ऐसे जैसे ये पहली बार है,
खेलिए, नौसिखिए बन,
कुछ गलत नहीं,
सब सीखने के नुस्खे हैं!
दिल बचपन करिए,
ज़िंदगी में जरा सचपन कीजिए!
कोई द्वेष नहीं, घृणा नहीं,
सब खेल हैं,
मिलने के,
साथ को बहकते हुए,
जब तक है, तब है
सौ फीसदी!
फिर कुछ और, या
कुछ नहीं!
न अपेक्षा, न उपेक्षा
चलिए बचपन चलें?
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