दिल
बहलाने को मज़हब ये कैसी चालें
चलते हैं!
अरसों
से छुपाये थे,
आज
अंधेरे दिन में बाहर निकले
हैं,
रंगों की चादर ओढ कर, न जाने कितने हाथ फ़िसले हैं!!
रंगों की चादर ओढ कर, न जाने कितने हाथ फ़िसले हैं!!
मुँह
काला करने की रवायतें पुरानी
हैं, सफ़ेदपोशों
की कोई ये शैतानी है!
बुरा न मानो थोड़ी ज़बरजस्ती करते हैं,
बाज़ार गर्म है, इज़्जत सस्ती करते हैं!!
घिस घिस के रंगी चेहरे सफ़ेद करते हैं,
इस
तरह लोग रातों को सुबह करते
हैं!
अपने मज़हब के हम यूँ ही यकीं हो गये,
संज़ीदगी
के अपनी ही शौकिं हो गये,
आसमां
अपने सारे जमीन हो गये
हाथ
रंगने को मिट्टी बहुत है,
फिर
भी लोग खून लाल करते हैं
मौत
कोई बीमारी नहीं है,
काहे
फ़िर मुर्ख इलाज़ करते हैं
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