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दौर-ए-सियासत!

सरकार दीवार बन गयी है,
व्यवस्था ज़ंजीर बनी है,
जमूहरियत में कैसी ये,

तानाशाह तस्वीर बनी है?

गुलामी के दौर हैं,
गुलामों की सियासत है,
किसके मथ्थे जड़ें, 
अज़ीब ये हालात हैं
 

ज़महूरियत तानाशाह बन गयी है,
फ़ासिवाद की पनाह बन गयी है!

डर सारे यकीन बन गये हैं,
सच जिद्द बन गयी है ,सियासत की,
ज़ुल्म है, जो बिन पूछे बगावत की!

हर एक कत्ल जन्म देता है नफ़रत को,
 ये कौन सी फ़सल की तैयारी है,
कौन सी नस्ल की!

रोज़ होते हैं, हर और हर हाल,
गुनाह नहीं है तहज़ीब का सवाल!

दुनिया गयी भाड़ में,
तरक्की की आढ में,
छाया काट रहे हैं,
सब धूप के जुगाड़ में!

सियासत साज़िश बन गयी है,
फ़िरकापरस्ती नवाज़िश,
इंकलाब की सिफ़ारिश है,
खामोशी अब मुहलिक(Fatal) है!


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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

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