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गुरुज्ञान!

जो सीखा है वही सर चढ चीखा है,
आजकल हर और शोर बहुत है! 


हर और उस्ताद हैं, सब के सब आबाद हैं,
फ़सल बनती है भेड़ों की, तालीम लाजवाब है!

हाल सिखाते हैं, हालात सिखाते हैं,
बात सिखाते हैं, दे लात सिखाते हैं,
जात सिखाते हैं जज़्बात सिखाते हैं,
कौन कहता है कि आप 'सिखाते' हैं?


गुरु गोविंद दोऊ खड़े, मांगे अपनी फ़ीस, 
ये ही दुनिया है चेले, सीख सके तो सीख!

जात का पाठ पढा गुरू बनते हैं - हाथी के दिखते दाँत
एक वो हैं जो घुंघरू 
बनते हैं - हर कदम साथ उस्ताद!



कहत कहत किस जात के,
जड़मत हुए सुजान,
बेशर्म 'उँची जात' कहें,
न ज़ूँ रेंगे इन कान!
 



गुरु हुए तो क्या हुए जैसे पेड़ खजूर,
तोता बन गये कई तो कोई बने लंगूर! 


पैदा हुए से सीखें हैं,
पढे गये तो सब भूल,
एक गाँठ बाँध लाये सो,
ड़ंड़ा पड़े सब कबूल

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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

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