मुझे खोना नहीं आता 'मैं' हूँ पर होना नहीं आता, चादर बहुत हैं सोने को, ओ मुझे बिछौना नहीं आता गम हमको भी हैं तमाम, उनके कंधे रोना नहीं आता अकेले भी अच्छे हैं बहुत, गोया हमें खोना नहीं आता!! उनकी एक ही शिकायत बस, जहां हैं वहां होना नहीं आता! आख़िर भूल जाते हैं सब, सबको, हमें किसी का होना नहीं आता! फर्क पड़ता है, क्या फर्क पड़ता है? क्यों हमें हक़ीकत होना नहीं आता? खुश होंगे सब इसलिए कह दें? हमें बातों को चाशनी डुबोना नहीं आता
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।