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अपनी क़यामत


एक सुबह का सवाल है,
क्यों दुविधा है मलाल है?
हालात क्या, क्या हाल है?
क्यों बिगड़ी वक्त की चाल है?




इस सुबह कोई एक बग़ावत हो,
चाहे वो कोई एक आदत हो,
जो होता आया वो देख लिया,
क्यों बिन मर्ज़ी कोई क़यामत हो?



क्या देखें क्या छोड़ दें,
बातों को क्या मोड़ दें?
करें कोई नयी कोशिश
या हाल पे ऐसे छोड़ दें?

सुबह की वही शिकायत है,
क्यों वही पुरानी आदत है?
क्यों अलग हो रहें है सब,
इंसानियत से क्या बग़ावत है?



परंपरा, संस्कृति, तहज़ीब, तर्बियत
नीयत बिगड़ी है या तबीयत,
इतनी नफ़रत, इतनी वहशत,
क्यों दकियानूसी हुई शराफ़त?





सुबह का दोपहर, शाम, रात से,
रिश्ता है किस जज़्बात से?

एक ही हैं, या एक धर्म-जात से?
कैसे बचेंगे नफ़रत के हालात से?













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