सच क्या है, क्या वजह है,
कहाँ हैं आप, क्या जग़ह है?
वक्त किसके पास, किसकी रज़ा है?
करने को कुछ नहीं ये ही अज़ा है!
सुबो आज भी क्यों लगती बेवज़ह है,
चमक रंगीन रातों की आंखों जमा है!
दिखता है हसीं पर क्या वो फज़ा है?
नज़र नहीं आता वो तीर-ए-कज़ा है?
जो सामने है वो सच है यही ज़ाहिर भी?
व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का यही मज़ा है?
उग रहा है सूरज पर क्या ये जग़ह है?
सोए हैं जमीर सब के, कौन जगा है?
सच मान के होंगे या कुछ जान के?
कैद हैं कितने उनके यकीन सज़ा हैं!!
रज़ा - मर्ज़ी; अज़ा - शोक मनाना; फज़ा - माहौल; तीर-ए-कज़ा - मौत का तीर
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें