मेरे आकाश मेरी जमीं
हाथ कुछ भी नहीं
और मैं अधर में
अपने यकीन पर शक
ओ दुनिया के बताए झूठ से ललचाया,
मैं हूँ अपना ही साया,
अपने अंधेरों की परछाई,
सच्चाई कभी रोशनी में
नज़र ही नहीं आई!
हिम्मत है?
अंधेरों के सच जानने की?
अपनी रूह को नापने की?
अपनी खाल उधेड़ने की?
अपना खून समेटने की?
सच तो हर जगह है,
कहाँ देखूं?
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