दर्द है बहुत पर अपना ही तो है,
टूट गया है वो पर सपना ही तो है!
कड़वाहट फैल गयी है हर ओर,
लाज़मी उसका चखना ही तो है?
अपना नही पराया लगता है अब,
क्या गिला मुल्क अपना ही तो है?
हाथ खड़े कर दें और बैठ जाएं?
उम्मीद को कहीं रखना भी तो है?
नफरत से भी इतनी मोहब्बत, कैसे?
क्यों दिल किसी का दुखना भी तो है?
और ये दौर भी गुज़र जाएगा एक दिन,
अभी फ़ूल गुलशन के महकना भी तो है!
समझ नहीं पाए हक़ीकत, ये इल्जाम,
फंदा तैयार है बस लटकना ही तो है!
उम्मीद के बनजारे हैं और कहाँ-कहाँ जाएंगे?
उनकी गली एक दिन फिर भटकना भी तो है?
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