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सबका साथ सब पर घात!


कह दिया मालिक ने ओ मान जाएं,
यूँ बेईमान हमें होना नहीं आता!

सवाल वाज़िब हैं सब ओ पुछे जाएंगे?
क्यों आपको बेबाक होना नहीं आता?



फूलों का दोष कि धागे की गलती?
चुभती है सुई या पिरोना नहीं आता!!

सब का साथ देने की बात करते हैं, झूठे
वो जिनको एक के साथ होना नहीं आता?


नीच नीयत है उनकी जो गद्दी बैठे हैं,
क़त्लेआम से उसे घबराना नहीं आता!




क्या बात करें उस शख़्श के ईमान की
खुदनुमाईश से जिसे कतराना नहीं आता!

कहता है वो चांद तक ले जाएगा, ओ
ठीक से दो सच बताना नहीं आता?



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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

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