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अपनापन!

हम 
उन्हीं आवाज़ों से
बात करते हैं,
जिन्हें हम खुद सुन सकते हैं,
और काया बोलती है,
और वो बात करती है, सिर्फ़,
उस देह--दुनिया से,
जो उसकी पकड़ में है।

और वो अपने आप में
एक जहां हो जाती है,
गौर करके,
कि उसका
सरोकार क्या है

और ये सीखती है,
कि उसे
क्या होना है,
और क्या लाज़मी है!

(डेविड व्हाईट की
द  विंटर ऑफ़ लिसनिंग से)


From The Winter of Listening
by David Whyte in The House of Belonging

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हाथ पर हाथ!!

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