आग जल रही है लाखों सीनों में,
गश्त की कैद में सूखे पसीनों से!
मन चाहा देखने की इजाज़त नहीं है,
9 हफ्तों से शुक्र की इबादत नहीं है?
मुश्किल सवालों की आदत नहीं है!
हामी के बाज़ार में बगावत नहीं है!
सवाल सारे कवायत हैं
रियासत की रवायत हैं,
फ़रमान ही भगवान है!
ख़बरदार, ये जुर्रत,
क्या औकात!
गले पर सरकारी हाथ!
ट्विटर पर गाली,
न्यूज़ सीरियल सवाली,
भीड़ की हलाली,
धर्मगुरु दलाली!
व्हाट्सएप के खेत हैं
डर के बीज
नफ़रत के पेड़,
मज़हबी भीड़, भेड़!
कश्मीर सिर्फ जमीन,
सुंदर बेहतरीन,
80 लाख कब्र, ज़िंदा,?
करोड़ों जोशीले मुर्दा, जानशीन?
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें