हुई कि नहीं सुबह?
दिन निकल आया
रोशनी भी है
पर ना सूरज है ना सुबह की चमक?
हवा झकझोर रही है,
बादल घनघोर रहे हैं,
चाय का जायका वही है!
पर असर अलग हो गया
मौसम छुट्टी वाला है,
पर यह कैसे समझे और किसे समझाएं?
जुत गए हैं सुबह सब फिर से,
कल को आज और आज को कल करने में!
वही अपनी हाजिरी भरने में?
बैल खेत जोत रही है,
गधे घास चर रहे हैं,
भेड़ चाल चल रही है,
और हम इंसान
सर्वोच्च प्राणी,
आजाद, समझदार,
चलिए जाने दीजिए
देर हुई तो फिर ट्रैफिक में...
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