रक्षाबंधन की फिर बात आई, बन जायेंगे सब भाई, कसाई आज फिर भाई! पत्नियों को मारने वाले, बहनों की रक्षा की बात करेंगे औरतों को बाज़ार में बिठाने वाले भी, अपना माथा तिलक करेंगे सीटियाँ आज भी बजेंगी, फब्तियां आज भी कसेंगी नेक इरादे भी औरतों को 'तुम कमजोर हो' याद दिलाएंगे हाथ में धागा और मुंह मीठा कर आयेंगे ये बंधन कच्चे धागों का है, या जिम्मेदारियों से भागों का है क्या बाजार में बैठी सारी बहने , बेभाई है? या अपनी बीबियाँ मारने -जलाने वाले सब बेबहन? सब कर के सहन, मन में छुपा के सब गहन फिर भी आज के दिन क्यों बनती है तू बहन? ये आशावाद पर विश्वास है या निराशा की ठंडी सांस है ?! डूबते को तिनके का सहारा है या हम में से हर कोई परंपरा का मारा है ? कल फिर से वही दुनिया होगी और वही कहानी आँचल में दूध, और आँखों में पानी, नामर्द मर्दों की बन कर जनानी! कल फिर सड़क से अकेले गुजरती लड़की बेभाई हो जायेगी !
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।