मैं अज्ञात हूँ थोडा बहुत विख्यात हूँ
किसी दिन अपनी जीत हूँ
किसी दिन अपनी मात हूँ
अपने ही मुहं से निकली हुई बात हूँ
चाँद का इंतज़ार करती रात हूँ
शतरंज पर बिछी हुई बिसात हूँ
अपनी ही शह को दी हुई मात हूँ
मर्द जात हूँ
जात निकला जमात हूँ
न बोला जो कभी वो ज़ज़्बात हूँ
कहने को ये सब तो फिर क्यों अज्ञात हूँ
बची हुई स्याही, अनकही लिखाई
दवात हूँ
मित्र हूँ
अधूरा है जो अभी वो चित्र हूँ
लकीरें है आकार नहीं
रंग है पर रंगत नहीं
पंक्तियाँ है पर पंगत नहीं
साथी है पर संगत नहीं
मैं अधुरा हूँ
इस विचार में पूरा हूँ
थोडा गोरा, थोडा भूरा हूँ
बचे हुए लड्डू का चुरा हूँ
अपने ही हाथ में दिया कटोरा हूँ
जो सामने आया वही बटोरा हूँ
सारी परम्पराओं का ठिठोरा हूँ!
नयी बातों को नौजवान छोरा हूँ
जहन में समंदर हैं
फिर भी कागज कोरा हूँ !
किसी दिन अपनी जीत हूँ
किसी दिन अपनी मात हूँ
अपने ही मुहं से निकली हुई बात हूँ
चाँद का इंतज़ार करती रात हूँ
शतरंज पर बिछी हुई बिसात हूँ
अपनी ही शह को दी हुई मात हूँ
मर्द जात हूँ
जात निकला जमात हूँ
न बोला जो कभी वो ज़ज़्बात हूँ
कहने को ये सब तो फिर क्यों अज्ञात हूँ
बची हुई स्याही, अनकही लिखाई
दवात हूँ
मित्र हूँ
अधूरा है जो अभी वो चित्र हूँ
लकीरें है आकार नहीं
रंग है पर रंगत नहीं
पंक्तियाँ है पर पंगत नहीं
साथी है पर संगत नहीं
मैं अधुरा हूँ
इस विचार में पूरा हूँ
थोडा गोरा, थोडा भूरा हूँ
बचे हुए लड्डू का चुरा हूँ
अपने ही हाथ में दिया कटोरा हूँ
जो सामने आया वही बटोरा हूँ
सारी परम्पराओं का ठिठोरा हूँ!
नयी बातों को नौजवान छोरा हूँ
जहन में समंदर हैं
फिर भी कागज कोरा हूँ !
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