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शहाना


किस का घर है, कौन सा कहर है,
दिन में साफ नज़र आता है
रात का पहर है
आप (शहाना) फिर भी हंस लेते है
ये कैसा असर है
...पेश जहर हुआ था
आप के पीने में फरक है!



नज़र और कदम जब साथ चलते है
रास्ते बड़े मुकम्मल मिलते हैं
मुश्किल मोड़ पर
खुद से नए हो कर मिलते हैं!



आईने क्या बताएँगे
आप खुद ही समझ लीजे
आप खुद कि जमीं है
जी भर के छलक लीजे!


मुट्ठी में अपनी थोडा सा फलक लीजे
आपका हिस्सा है
जी भर के हलक लीजे!

पसीना सुख जायेगा, अश्कों को पलक लीजे
इरादों में अपने थोड़ी और ललक लीजे 
 

(ये कुछ शब्द शहाना को समर्पित हैं, शहाना पिछले १० सालों से हैदराबाद ओल्ड सिटी में मक्का मस्जिद के बाजु में, अपने १०वर्ग फुट(10 square feet) के घर में रहते हुए(अपनी अम्मी, अब्बा ओर भाइयों के साथ), अमन शांति के कामों से जुडी हुई हैं. उन्होंने १६ साल कि उम्र से स्वयंसेवी बन कर काम शुरू किया था. आज वो भारत के किसी भी हिस्से में जाकर बच्चों, युवा, और शिक्षकों के साथ काम करती हैं. १० दिन पहले जब उनका घर गिरा दिया गया तो वो अपने किस्मत कोसते नहीं बैठी. दुनिया कि तमाम कोशिशें जो उन्हें इस बात का यकीं दिलाने कि कोशिश करती हैं कि वो कम है, कमजोर है, उन सब बातों को ठेंगा दिखाकर शहाना आज भी अपने काम में लगी हुई हैं.)


 

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