खो जाना कोई मर्ज नहीं, फिर उसकी दवा क्या?
क्या समझेंगे जिनको जंजीरें रास्ता दिखाती हैं
जिनकी हर सुबह को शाम आती है,
उन लम्हों का क्या जो खत्म नहीं होते?
उन चोटों का क्या जो कभी जख्म नहीं होते?
हर आह का मतलब क्यों?
हर वाह का हिसाब क्या?
और नक्शों पर सिर्फ कल रहता है!
सवाल बेमानी है अगर कोई हल रहता है,
वो खोज ही क्या जो खजाने पर खत्म हो?
रुकिए तभी जब सामने कोई प्रश्न हो??
Wah Wah sir aapne bahot accha likha hai
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