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सितंबर, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वक्त साकी वक्त पैमाना!

इश्क सलामत है कयामत को असर करने को , युँ तो उमर गुजरने को फ़क्त समय काफ़ी है! इश्क़ इबादत है क़यामत को असर होने को, युँ तो रोज़ का दुआ-सलाम काफ़ी है! वक्त साकी है हंसी ये शाम होने दो, लम्हों को छलकता जाम होने दो ! पैमाने में मत ड़ालो हर एक पल को, साथ को मेरे यूँ ही अंजाम होने दो! सफ़र ही बेहतर अपने, चाहे कुछ नाम रहने दो, मुसाफ़िर हमसफ़र हैं, रास्तों को काम रहने दो!   अकेलापन् गम हुआ तो क्या अकेलापन कम होगा? चंद लम्हे आँखॊं का मौसम जरा नम होगा, बदल जायेंगे रास्ते किसी मोड़ पर आकर पलक् झपकते बदला हुआ मौसम होगा! वक्त बीतेगा तो उनका भी गम कम होगा, मुस्कराएंगे तो वही मौसम होगा, 'सेल्फ़ी' ली कभी ज़ुल्फ़ लहरा के तस्वीर में एक खालीपन होगा! दूर है पर इतने भी मज़बुर नहीं‌ हैं, मालिक हैं वो मेरे, हुज़ूर नहीं हैं! नज़दीकियों के इतने मजबूर नहीं हैं, अपने ही हाथों से हम दूर नहीं है! युँ तो हम युँ भी मुस्कराते हैं, और बात है जब करीब आते हैं! हर साँस दिल को एक खबर देती है, हर खबर खुद को ढुंढते नज़र आते हैं!

हम सफ़र!

हो गयी मोहब्बत है तो गले मिल लीजे, बात आगे बड़ गयी तो मुश्किल होगी! इकरार है तो सफ़र साथ कर लीजे, यूँ नहीं कि सपनों में सबर कीजे! नासमझी का एक और नाम मोहब्बत है, वरना इंसा-इंसा में फ़रक कोई करता है? है चार दिन जिंदगी ये तय किये बैठा हूँ,  कहाँ जाऊं कि तुझे दिल किये बैठा हूँ!! हम सफ़र हैं तो कभी मोड़ आयेंगे, हमसफ़र हैं क्या कभी छोड़ पायेंगे! मोहब्बत है तो शिकायत की गुंजाईश नहीं, पसंद न आये ये ऐसी कोई नुमाईश नहीं! मुहब्बत में कोई भी परेशानी जायज़ नहीं, दीवानगी में ऐसी कोई भी रवायत नहीं! कुछ ऐसी हकीकत है, जैसे सपनों‌ की शरारत है, मुस्कराते हैं ऐसे जैसे हम कोई हसीन आदत हैं चलिये हम मोहब्बत को एक नाम देते हैं दुआ दीजिये, आपको ये काम देते हैं! यूँ अपने ज़ज़बातों को अंज़ाम देते हैं,  आप हाँ करिये मोहब्बत नाम देते हैं!

शुभ या सिर्फ़ कामनायें?

अष्टमी, चतुर्थी, नवमी और सफाई की तेरवीं, हमारी कृति है या हमारी महान संस्कृति? कल सब को गणेश की मूर्ति खरीदते देखा, समझ नहीं आया की लोग क्या बेच रहे थे? लगे हैं बड़े बड़े पंडाल से ललचाने, सब को भगवान अपने ख़ास चाहिए!  क्या मूर्ति खरीदना भक्ति बेचना नहीं है, भगवान के नाम सब अंधे काम करते हैं! शीला की जवानी गणपति उत्सव की जुबानी, किसी माथे पर शिकन नहीं, भक्ति की निशानी!! जबरन चंदा ले कर सब इंतज़ाम करते हैं, बड़ी मेहनत से मिट्टी को भगवान करते हैं! छैनी हथौड़ा हाथ से भगवान बनाया किसको खबर मज़दूर दो रोटी खाया! शोर शराबा चारों ओर कि भगवान चाहिए, हर गली हर मोड़ एक दूकान चाहिए साल भर चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी, नवमीं, एकादशी, पर उनसे उपजे कचरे की तेरवीं कभी क्यों नहीं? धूम-धड़ाका, शोर-शराबा, बड़ा त्योहार, गली गली कचरे का बड़ा ढ़ेर तैयार!

कौनसे सच?

सच महंगे होंगे तो जरूर बिकेंगे कहिये आप किस बाज़ार टिकेंगे? अकेले सच कोई नहीं लेता,  पहले आप के ही दाम लगायेंगे! आप खबर बस सुनते हैं या चुनते हैं? या सुन कर फिर अपने सच बुनते हैं सच जानने का दौर गया, सच मानने पर सब ज़ोर है! बना बना के सच बेचते है  लाशों पे अपनी रोटी सेंकते हैं बड़े शातिर है शैतान भुखों को मज़हब का चारा फ़ेंकते हैं! कैसे सच अपने आसान करें,  जब सामने झूठ पहलवान करे लाठी ले कर हाथ में कहें,  भैंस का चलना आसान करें! सच का भी मज़हब होता है, जात होती है, गौर कीजे, कोई लाठी उनके हाथ होती है! दिल से मागेंगे तो हर एक दुआ असर होगी, पर ज़रा सच चख के, छूटी कोई कसर होगी! सांच को आंच नहीं, हाथ कंगन को आरसी क्या, ताकत सर चढी तो हिंदी, संस्कृत फ़ारसी क्या? कैसे बनते हैं तमाम सच किस के मन की बात से? तमाम सपने टूटे पड़े हैं, झूठे इरादों को घात से!

इश्क़ बगावत!

प्यार करना मेरी आदत है मतलब ये नहीं कि सबको दावत है! कोई गुनाह नहीं कि सबूत हो, ऐसी उम्मीदों को लानत है! ये जरूर नही कि दोनो को हो,  बेवज़ह न कोई क़यामत हो! नज़रों से कुछ बयाँ न करें,  इस ज़ुबाँ में मेरी ज़हालत है! जो मेरे जहन को जहमत दे उस शय को ये शहादत है! जो मेरी रुह को लानत दे ये बात उसी के बावत है किसी मंजूरी का नहीं मोहताज़ मेरा इश्क भी इक बगावत है!! दिल तोड़ के इतना खुश न बनो कुछ टुकड़े अब भी सलामत हैं !

काम आसान

  काम फकीरी का ज़रा आसान चाहिए, क्यों दुआ मांगे के सुख सामान चाहिए! क्यों लाउडस्पीकर पर भजन इबादत है नेमत बरस रही है आपको कान चाहिए! लॉटरी वाले का नाम भगवान चाहिए, मन्नत पूरी होना ज़रा आसान चाहिए! क्यों शोर मंदिर मस्ज़िद गिरजे में इतना है, इतना बस काफी नहीं की हम इंसान हैं! बस एक फ़िक्र की दोनों हाथ में लड्डू हों, और हाथ फैला के कहते भगवान चाहिए? क्यों हर काम आसान चाहिये, कोशिशों में ज़रा जान चाहिए!   बुरे कामों को नाम भगवान चाहिये, बगल में दबी छुरी को राम चाहिये! सब अपनी अपनी नीयत के इंसान हैं, सबको अपने हिस्से के भगवान चाहिये! खुदा बँट गये हैं तमाम मज़हबों में, सबको अपने हिस्से के इंसान चाहिये!

सरहदें

सरहदें,  मुल्क की, जात कि, औकात की,  बिना बात की,  पैरों की बेड़ियाँ,  चटखती एड़ियाँ,  सामने समाज की दीवार,  और अंदर यकीन लाचार,    किससे मिलें, क्या सोचें,  तौलें या तुलें,  मुस्करायें या हाथ मिलायें,  मैं अपने दायरों में फ़िर भी बंधा नहीं, उड़ने के लिये मुझे आसमाँ बहुत! कितनी दूरी रक्खें,  कितने नज़दीक आयें,  किसे अजनबी रहें, किससे पहचान बनायें,  गले मिलें! और कहीं‌ गले पड़ जायें? किस ज़ुल्म पे चीखें,  किसे हज़म कर जायें? मस्ज़िद टूटी तो "हे राम" मंदिर को हाथ लगाना हराम? कहाँ खीचें लक्ष्मण रेखायें? सामने घूंघट/ परदा कर के आयें, पर्दे पर आज़ादी,  "बेबी ड़ॉल" वो सोने की,  उसको क्यों कपड़ॅ पहनायें,  रात में ज़लदी घर पर आयें,  कहाँ कहाँ खींचें लक्ष्मण रेखायें? जात बतायें या जात छुपाएं,  सामने इंसान है या बम्मन ?  (माइंड़ मत कीजिये प्लीज़, बम्मन से मतलब है पूरा सवर्ण वर्ग, राजपूत, ठाकुर, २,३,४ वेदी, पाड़े, सक्सेना, माथुर, गुप्ता, कंसल, बैनर्जी, सिन्हा, नैयर, तिलक, रानाड़े, गोख्ले, भट्ट आदि इत्यादि) कैसे बतायें या पताएं,  बदतमीज़ी नहीं करना पर क

अरे बैन- छोड़ !

शानदार भारतीय परंपरा,  "त्याग" ,  सीधी भाषा में बोलें तो "छोड़ना" राम ने राज त्यागा, राम राज हो गया,  वनवास करने के बाद दोबारा राज छोड़ने में कोई एक्साइटमेंट नहीं था,  टी.आर.पी भी  नहीं मिलती,  रियलटी शो का नया सीज़न था सीता त्याग दी,  मर्द बन गये, वाह, मर्दाना पुरुषोतम,  खैर वो पुरानी कहानी है,  "हे राम"  अब सरकार ने जनता को भगवान बनाने की ठानी है,  एकदम फ़्रेश कहानी है, फ़ुलटू टी आर पी वाली अरनब कि कसम, आप सब जानते हैं, त्याग से भगवान बनते हैं,  राम हुए, बुद्ध हुए,  वो राजाओं का युग था,  राजा भगवान हो गये अब प्रज़ा का युग है,  तो प्रज़ा बनेगी,  (ये एपिसॊड़ लम्बी चलेगी ) पर कैसे,  त्याग तो सिखाना होगा छोड़ना,  अब एक एक को कहां समझाने जायें,  चलो बैन का रास्ता अपनायें  बैन जोड़   मतलब बेजोड़ आईड़िया है,  और सदियों से कहावत चली आ रही है,  एन आईड़िया केन बदलो दि दुनिया बीफ़ बैन - छोड़     खाने का त्याग, अब मुसलमान भगवान होंगे मीट बैन -छोड़    खाने का त्याग, अब शिवसेनी भगवान होंगे फ़िल्म में गाली बैन - छोड़, अब सितारे भग

मुबारक मैं!

इंकार बिल्कुल नहीं है , पर इकरार जबरन न हो , दस्तूरों रिवाजों‌ को हर्गिज़ , मेरी गर्दन न हो , बात हो , साथ हो , हाथ हो , इज़्ज़त लाज़िम हो , सौगात न हो , कोई लेने नहीं आये युँ कि कोई सामान हैं ? कहीं जाना न हो , कि रुखसत मेहमान है दुआ कुबूल है , पर पोते नाती का ये हिसाब अभी फ़िज़ूल है , रंग , कद , वजन का शौक है तो किसी ज़िम में काम ढुंढिये , ये बाज़ार नहीं है कि , पसंद के आम ढुंढिये ! मैं "एज़ इज़ वेहर इज़" हूँ,  सोच समझ लीजिये, दहेज सोच रहे हैं तो मेरी आदतें और मेरी राय , और एक पूरी दुनिया , मेरे दोस्तों की दोस्ती साथ लाउंगी मैं आसान हूँ , इस की गारंटी नहीं , हाँ पर मेरे दोस्त कभी मुझसे बोर नहीं होते ! कहिये कबूल है ? अगर इरादे नेक हैं साथ चलिये , रास्ते मिलिये न मैं तुम को बदलूंगी , न आप मुझे बदलिये अगर ये देख - सुन , आप मुस्करा रहे हैं , तो मैं आप को मुबारक हुँ ! वर्ना पलक झपकिये, मैं नदारत हूँ, (दुधो नहाओ पूतो फ़लो, और भेड़ की चाल चलो)  मेरे दोस्तों, साथियों और उन सभी लड़कियों को समर्पित जो दुनिया की सेहत को बेहतर बनाने में लग

अपने अधूरे कि दूसरे के पूरे?

तमाम शादियाँ है इस ज़हान में, हर रंग की, क्यों जरूरी कि हम इस खेल के जमूरे हों? ठीक करना है मेरे मुस्तकबिल को या मुझे तक़दीर के ठिकाने लगाना है? अपने अधूरे अच्छे, क्यों दुसरे के पूरे हों, बेढब रस्मो-रिवाज़ों के हम क्यों जरूरे हों? मेरे रास्ते हैं, मेरे सफ़र हैं, कभी अकेले कभी हमसफ़र हैं, कदम मिलेंगे तो साथ भी चलेंगे! यूँ नहीं हम किसी साँचे ढलेंगे अपने तजुर्बों के मुकम्मल हैं, क्यों कोई मेहरबानी पेलेंगे ये क्या मज़बूरी है कि किसी के हाथ आयें अच्छे खासे हैं, लाज़िमी है कि हम खुद को मिलेंगे! रब की मर्ज़ी या खुदगर्ज़ी, फ़िक्र की बातें, झूठी अर्ज़ी डर के फैसलें सब सब फ़र्जी अपनी राय के सब बाबर्ची फटे नहीं मेरे पैराहन मेरे चादर मेरी मनमर्ज़ी, नाप मेरे ही रहेंगे, आप क्यों बने हैं दर्ज़ी! चलने से इनकार नहीं रास्तों को नकार नहीं सामान किसी का बन चलने को तैयार नहीं सफार के लिए हमसफ़र जरुरत है, और खुदमख्तारी गुनाह नहीं इंसानी फ़ितरत है (क्यों हम हर लड़की को शादी के तराजू में तोलते हैं, सब करते हैं कोई वजह है या दायरे में बंधी सोच। आ

मेरे अंदाज़ या अंदाज़न मैं?

सुबह के बाद शाम जब मिलता हूँ खुद से , बड़ा अजनबी सा नज़र आता हूँ !  चलो कुछ नए अंदाज़ करते हैं , दो तीर कैसे तीरंदाज़ करते हैं ?  आज मैं कुछ भी नहीं हूँ , ये शुरुवात अच्छी है !  हम मुफ़्त में बंट रहे हैं , लोग भीड़ से छंट रहे हैं कोई मोल करता है कोई अनमोल करता है जो भी करे ज़माना बहुत तौल करता है ! नए अंदाज़ होने को नए अलफ़ाज़ नाकाफी , रूख बदलो किसी हकीकत का फिर बोलो !  मैं वक्त के हाथों फिसलता जाता हूँ , हूँ वही पर बदलता जाता हूँ !  लड़ते-झगड़ते, बनते-बिगड़ते, संभल जाएँ तो शायरी है!

बूंद बूंद तिनके, आसमां चुन के!!!

कोशिश नापिये, वही मंज़िल जाती हैं, हर कोशिश अंजाम है, क्यों 'मुश्किल'पहचान है! रेत के भी महल होते हैं, इरादे घड़ियों से न नापो! हर तिनका आसमान है, गर उसे अपनी पहचान है! हर पत्ता हवा है, उसको रुख पता है! हर बून्द समन्दर काबिल है, हर तहज़ीब बड़ी ज़ाहिल है! नज़र हो तो बून्द समंदर है, समझो क्या आपके अंदर है! बिना जमीं के आसमान कुछ नहीं, मुश्किल न हो तो आसां कुछ नहीं!