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मुबारक मैं!


इंकार बिल्कुल नहीं है,
पर इकरार जबरन न हो,
दस्तूरों रिवाजों‌ को हर्गिज़,
मेरी गर्दन न हो,
बात हो, साथ हो, हाथ हो,
इज़्ज़त लाज़िम हो, सौगात न हो,

कोई लेने नहीं आये
युँ कि कोई सामान हैं?
कहीं जाना न हो,
कि रुखसत मेहमान है
दुआ कुबूल है,
पर पोते नाती का
ये हिसाब अभी फ़िज़ूल है,
रंग, कद, वजन का शौक है तो
किसी ज़िम में काम ढुंढिये,
ये बाज़ार नहीं है कि,
पसंद के आम ढुंढिये!
मैं "एज़ इज़ वेहर इज़" हूँ, 
सोच समझ लीजिये,
दहेज सोच रहे हैं तो
मेरी आदतें और मेरी राय,
और एक पूरी दुनिया,
मेरे दोस्तों की दोस्ती साथ लाउंगी
मैं आसान हूँ,
इस की गारंटी नहीं,
हाँ पर मेरे दोस्त कभी
मुझसे बोर नहीं होते!
कहिये कबूल है?
अगर इरादे नेक हैं
साथ चलिये, रास्ते मिलिये
न मैं तुम को बदलूंगी,
न आप मुझे बदलिये
अगर ये देख-सुन,
आप मुस्करा रहे हैं, तो
मैं आप को मुबारक हुँ!
वर्ना पलक झपकिये,
मैं नदारत हूँ, (दुधो नहाओ पूतो फ़लो, और भेड़ की चाल चलो) 

मेरे दोस्तों, साथियों और उन सभी लड़कियों को समर्पित जो दुनिया की सेहत को बेहतर बनाने में लगी हुई हैं, जो मुझे एक बेहतर इंसान बनने कि लिये चुनौती भी देती हैं, मदद भी करती हैं, और साथ भी चलती हैं!

(शादी एक सफ़र है, साथ का, ये आज की बात है, अगर आप समय में अटके हुए हैं या पित्रसत्ता सोच में फ़ँसे हैं तो आप इतिहास के पन्नों में जाकर रहिये। मर्द औरत के रेशो में फ़रक का सीधा सीधा मतलब है कि हमारी पुरानी सामाजिक व्यवस्था बीमार थी और उसकी शिकार हमेशा औरतें रही हैं। अगर आप सेहतपसंद हैं तो सोच बदलिये)



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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

पूजा अर्चना प्रार्थना!

अपने से लड़ाई में हारना नामुमकिन है, बस एक शर्त की साथ अपना देना होगा! और ये आसान काम नहीं है,  जो हिसाब दिख रहा है  वो दुनिया की वही(खाता) है! ऐसा नहीं करते  वैसा नहीं करते लड़की हो, अकेली हो, पर होना नहीं चाहिए, बेटी बनो, बहन, बीबी और मां, इसके अलावा और कुछ कहां? रिश्ते बनाने, मनाने, संभालने और झेलने,  यही तो आदर्श है, मर्दानगी का यही फलसफा,  यही विमर्श है! अपनी सोचना खुदगर्जी है, सावधान! पूछो सवाल इस सोच का कौन दर्जी है? आज़ाद वो  जिसकी सोच मर्ज़ी है!. और कोई लड़की  अपनी मर्जी हो  ये तो खतरा है, ऐसी आजादी पर पहरा चौतरफा है, बिच, चुड़ैल, डायन, त्रिया,  कलंकिनी, कुलक्षिणी,  और अगर शरीफ़ है तो "सिर्फ अपना सोचती है" ये दुनिया है! जिसमें लड़की अपनी जगह खोजती है! होशियार! अपने से जो लड़ाई है, वो इस दुनिया की बनाई है, वो सोच, वो आदत,  एहसास–ए–कमतरी, शक सारे,  गलत–सही में क्यों सारी नपाई है? सारी गुनाहगिरी, इस दुनिया की बनाई, बताई है! मत लड़िए, बस हर दिन, हर लम्हा अपना साथ दीजिए. (पितृसता, ग्लोबलाइजेशन और तंग सोच की दुनिया में अपनी जगह बनाने के लिए हर दिन के महिला संघर्ष को समर्पि

हमदिली की कश्मकश!

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