सरहदें,
मुल्क की, जात कि, औकात की,
बिना बात की,
पैरों की बेड़ियाँ,
चटखती एड़ियाँ,
सामने समाज की दीवार,
और अंदर यकीन लाचार,
किससे मिलें, क्या सोचें,
तौलें या तुलें,
मुस्करायें या हाथ मिलायें,
कितनी दूरी रक्खें,
कितने नज़दीक आयें,
किसे अजनबी रहें, किससे पहचान बनायें,
गले मिलें! और कहीं गले पड़ जायें?
किस ज़ुल्म पे चीखें,
किसे हज़म कर जायें?
मस्ज़िद टूटी तो "हे राम"
मंदिर को हाथ लगाना हराम?
कहाँ खीचें लक्ष्मण रेखायें?
सामने घूंघट/ परदा कर के आयें,
पर्दे पर आज़ादी,
"बेबी ड़ॉल" वो सोने की,
उसको क्यों कपड़ॅ पहनायें,
रात में ज़लदी घर पर आयें,
कहाँ कहाँ खींचें लक्ष्मण रेखायें?
जात बतायें या जात छुपाएं,
सामने इंसान है या बम्मन ? (माइंड़ मत कीजिये प्लीज़, बम्मन से मतलब है पूरा सवर्ण वर्ग, राजपूत, ठाकुर, २,३,४ वेदी, पाड़े, सक्सेना, माथुर, गुप्ता, कंसल, बैनर्जी, सिन्हा, नैयर, तिलक, रानाड़े, गोख्ले, भट्ट आदि इत्यादि)
कैसे बतायें या पताएं,
बदतमीज़ी नहीं करना पर
कैसे कहें अपनी औकात पर आयें,
गरीब कैसे अपनी रेखा से उपर आयें,
रिश्ता बराबरी का होता है ,
वरना खाप को न्यौता है,
क्या करें मेरी लक्ष्मण रेखायें,
सिमटें या, दायरा बनायें,
मैं हूँ कौन,
अपने आप में एक,
अलग या अकेला?
अपनी पसंद या
बहुमत की गंद,
जो बिक रहा है,
धर्म, कर्म,
बॉलीवुड़ में बना मर्म,
या काली गाय का चर्म,
क्योंकि गोरी है तो माँ है!
मुझे किस सरहद में रहना है?
खूनी शोर में चुप?
लोकतंत्र है इसलिये सहना है?
जो सब की गाय है, क्षमा कीजिये,
जो सबकी राय है वही कहना है,
यानी औरत इंसान नहीं गहना है?
कहिये आपका क्या कहना है?
आवाज करें, सवाल उठायें?
भूल गये क्या,
आप इंसान है?
वही करिये जो मुश्किल काम है,
मज़हबी होना तो बहुत आसान है!
चलिये!
तमाम लक्ष्मण रेखायें मिटायें,
मुल्क की, जात की, औकात की,
पैरों के बीच उस बात की,
जो हमें आधा करती है,
उम्र की, भाषा की,
आशा और निराशा की
जहाँ ड़र न हो,
मेरे रंग, अंग, संग का कोई फ़रक न हो,
जहां हम एक-दुसरे की उड़ाने देखें,
लगामें नहीं,
वहाँ आइये, इंसा हो जाइये!
मुल्क की, जात कि, औकात की,
बिना बात की,
पैरों की बेड़ियाँ,
चटखती एड़ियाँ,
सामने समाज की दीवार,
और अंदर यकीन लाचार,
किससे मिलें, क्या सोचें,
तौलें या तुलें,
मुस्करायें या हाथ मिलायें,
मैं अपने दायरों में फ़िर भी बंधा नहीं, उड़ने के लिये मुझे आसमाँ बहुत! |
कितने नज़दीक आयें,
किसे अजनबी रहें, किससे पहचान बनायें,
गले मिलें! और कहीं गले पड़ जायें?
किस ज़ुल्म पे चीखें,
किसे हज़म कर जायें?
मस्ज़िद टूटी तो "हे राम"
मंदिर को हाथ लगाना हराम?
कहाँ खीचें लक्ष्मण रेखायें?
सामने घूंघट/ परदा कर के आयें,
पर्दे पर आज़ादी,
"बेबी ड़ॉल" वो सोने की,
उसको क्यों कपड़ॅ पहनायें,
रात में ज़लदी घर पर आयें,
कहाँ कहाँ खींचें लक्ष्मण रेखायें?
जात बतायें या जात छुपाएं,
सामने इंसान है या बम्मन ? (माइंड़ मत कीजिये प्लीज़, बम्मन से मतलब है पूरा सवर्ण वर्ग, राजपूत, ठाकुर, २,३,४ वेदी, पाड़े, सक्सेना, माथुर, गुप्ता, कंसल, बैनर्जी, सिन्हा, नैयर, तिलक, रानाड़े, गोख्ले, भट्ट आदि इत्यादि)
कैसे बतायें या पताएं,
बदतमीज़ी नहीं करना पर
कैसे कहें अपनी औकात पर आयें,
गरीब कैसे अपनी रेखा से उपर आयें,
रिश्ता बराबरी का होता है ,
वरना खाप को न्यौता है,
क्या करें मेरी लक्ष्मण रेखायें,
सिमटें या, दायरा बनायें,
मैं हूँ कौन,
अपने आप में एक,
अलग या अकेला?
अपनी पसंद या
बहुमत की गंद,
जो बिक रहा है,
धर्म, कर्म,
बॉलीवुड़ में बना मर्म,
या काली गाय का चर्म,
क्योंकि गोरी है तो माँ है!
मुझे किस सरहद में रहना है?
खूनी शोर में चुप?
लोकतंत्र है इसलिये सहना है?
जो सब की गाय है, क्षमा कीजिये,
जो सबकी राय है वही कहना है,
यानी औरत इंसान नहीं गहना है?
कहिये आपका क्या कहना है?
आवाज करें, सवाल उठायें?
भूल गये क्या,
आप इंसान है?
वही करिये जो मुश्किल काम है,
मज़हबी होना तो बहुत आसान है!
चलिये!
तमाम लक्ष्मण रेखायें मिटायें,
मुल्क की, जात की, औकात की,
पैरों के बीच उस बात की,
जो हमें आधा करती है,
उम्र की, भाषा की,
आशा और निराशा की
जहाँ ड़र न हो,
मेरे रंग, अंग, संग का कोई फ़रक न हो,
जहां हम एक-दुसरे की उड़ाने देखें,
लगामें नहीं,
वहाँ आइये, इंसा हो जाइये!
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