सुबह
के बाद शाम जब मिलता हूँ
खुद से,
बड़ा अजनबी सा नज़र आता हूँ!
खुद से,
बड़ा अजनबी सा नज़र आता हूँ!
चलो
कुछ नए अंदाज़ करते हैं,
दो तीर कैसे तीरंदाज़ करते हैं?
दो तीर कैसे तीरंदाज़ करते हैं?
आज
मैं कुछ भी नहीं हूँ,
ये शुरुवात अच्छी है!
ये शुरुवात अच्छी है!
कोई मोल करता है कोई अनमोल करता है
जो भी करे ज़माना बहुत तौल करता है!
नए
अंदाज़ होने को नए अलफ़ाज़
नाकाफी,
रूख बदलो किसी हकीकत का फिर बोलो!
रूख बदलो किसी हकीकत का फिर बोलो!
मैं वक्त के हाथों फिसलता जाता हूँ,
हूँ वही पर बदलता जाता हूँ!
लड़ते-झगड़ते, बनते-बिगड़ते,
संभल जाएँ तो शायरी है!
संभल जाएँ तो शायरी है!
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