साहिल किनारे, समंदर के धारे,
सुबह के नज़ारे, रोशन ज़हाँ रे!
उम्मीदों के इरादों को कैसे इशारे,
यकीनों को सारे नज़ारे सहारे!
लहरों के रेतों पर बहते विचारे,
लकीरी फकीरों के छूटे सहारे!
हर लहर को मिले अलग किनारे,
दूजे को देख क्यों हम आप बेचारे ?
दूर यूँ उफ़क से समन्दर मिलारे,
सपनों को अपने कुछ ऐसे पुकारें!
किनारों को समेटे समंदर ज़हाँ रे,
किनारों को लगे वो उनके सहारे
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