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सच सुबह!

सब खुश हैं,
अपनी अपनी जगह पर
अपनी अपनी जगह से,
फ़िलहाल, इस पल में
और फिर
सब बदल जायेगा
और फिर
भी
सब खुश हैं,
अपनी अपनी जगह पर
अपनी अपनी जगह से
सूरज बादल आसमान जमीं
सारा निसर्ग,
सब साथ हैं,
अपनी अपनी जगह भी,
और उस के साथ बदलते
न अटके हैं , न भटके हैं
न कोई चिन्ता है,
न कोई इंसिक्युरिटी,
न खींच-तान,
न अपनी जगह का दबदबा,
पानी पानी, हवा हवा
सब चल रहा है,
सब बदल रहा है,
बदलने की कोशिश नहीं,
क्योंकि बदलना ही ज़िन्दगी है,
कोशिश तब जब डर हो,
अगर मगर हो,
खम्बों में घर हो,
और ये गुमाँ कि कुछ मेरा है,
"मैं" मालिक,
कितनी इंसानों जैसी बात है,
आप ही कहिए,
इंसान होना कौन बड़ी बात है!??






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मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

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