सुबह समंदर की,
कुछ बाहर से कुछ अंदर की,
शांत किसी बवंडर की,
सब कुछ है,
और कितना कुछ नहीं,
ये सच भी है, और है भी सही,
कोई है और है भी नहीं,
सामने है वो साथ है क्या,
माक़ूल ज़ज्बात हैं क्या,
खोये की सोचें, या
पाए को सींचें,
लम्हा हसीं है,
पर कैसे एक उम्र खींचें,
हाँ है अभी,
उतना अपना,
जितना आप छोड़ दें,
हाथ बड़ाएं तो क्या तय है,
वो पल मुँह मोड़ दे,
जो है बस वही,
आगे कुछ नहीं,
ज़िन्दगी समंदर है,
लम्हे सारे बंदर,
पकड़ने गए तो हम क्या रहे!?
कुछ बाहर से कुछ अंदर की,
शांत किसी बवंडर की,
सब कुछ है,
और कितना कुछ नहीं,
ये सच भी है, और है भी सही,
कोई है और है भी नहीं,
सामने है वो साथ है क्या,
माक़ूल ज़ज्बात हैं क्या,
खोये की सोचें, या
पाए को सींचें,
लम्हा हसीं है,
पर कैसे एक उम्र खींचें,
हाँ है अभी,
उतना अपना,
जितना आप छोड़ दें,
हाथ बड़ाएं तो क्या तय है,
वो पल मुँह मोड़ दे,
जो है बस वही,
आगे कुछ नहीं,
ज़िन्दगी समंदर है,
लम्हे सारे बंदर,
पकड़ने गए तो हम क्या रहे!?
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