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तस्वीर आज की!

क्या तस्वीर है मेरे मुल्क की इस रोज़, के एक तरफ जोर है जुल्म का, ताकत है सियासत की, और गले पर अवाम के जूता है! क्या आपको एहसास-ए-अलामत है(what this symbolizes?)? कहाँ आपकी लानत है? क्यों नहीं मलामत है? (where is your questioning, criticism?) अपनी ख़ामोशी सुनिए, देखिए अपनी चुप्पी को आइनों में, ईमान के, संविधान के! #जामिया #JamiaProtest #PoliceBrutality #Studentvoices #GovtTerror #RSSGoons #CABProtests हम बात करेंगे वो बलात करेंगे, लाठी करेंगे घूंसा लात करेंगे, कभी धर्म करेंगे फिर जात करेंगे, नफ़रत से सारे ताल्लुकात करेंगे! #भारत_सरकार #बीजेपी #जामिया #JamiaProtest #Jamia #cab सर पर लाठी है, गरेबाँ पर हाथ हैं, सियासी ज़ुल्म के आज़ ये हालात हैं! #जामिया #Jamia #Students #GovernmentTerror #CAB #solidarity लाठी से बात करते हैं, गोली से बात करते हैं, कहाँ हैं अब वो इंसान जो इंसान से बात करते हैं!! जुनून जलाते हैं, जोश पर लाठी है, हिम्मत पर गोली चली है, और क्या बाकी है? #सरकारी_आतंक #जामिया #Jamia #JamiaFiring #IndianGovtTerror #OfficialTerrorism

भूल-चूक, लेनी-देनी!

जो गुज़र गया एक ख्वाब था जो रह गयी एक याद है! जो गुज़र गयी एक आस थी जो रह गयी एक प्यास है! जो कह डाली वो बात है, जो बची वो तन्हा रात है! जो मिल गया एक साथ था जो खो गया वो प्यार है? जो ठहर गया एक पल था जो गुज़र गया वो वक्त है! जो टूट गया एक तार था, जो रह गई एक झंकार है! जो है वोही सब हालात हैं, संभले नहीं वो जज़्बात हैं! तुम हो तो सारी बात है,  जो नहीं तो वोही बात है! जो दब गई वो आवाज़ थी, जो बच गई वो खमोशी है!

पनपना!

सपना है अपना है पनपना है! चखना है हर स्वाद, हर मोड़  मुड़ना है, जुड़ना है, जमीन से, उड़ना है, लड़ना है, मुश्किल से, खेलना है, ज़िंदगी,  ज़िंदादिली से, हमदिली से  मिलना है, सब से, आसान बनके, पनपना है!

टिटहरियां!

वक्त के धागे से, याद की सुइयों में दर्द को सीते हैं ! गुजरे हुए मौसम की, सुखी बरसातों को अश्कों से भिगोते हैं! यादों की पतझड़ के, टूटे हुए पत्तों से छुपते छिपाते हैं!  जिस्मानी रातों की, रूहानी बातों के लम्हे जुटाते हैं! चुभ न जाए कहीं, बंद हुई पलकों में सपनों को सुलाते हैं! अधखुली क़िताबों में, गुम हुए शब्दों के मतलब तलाशते हैं! तन्हाई के शोर सुन, खामोशियों की भीड़ में, ख़ुद को गुनगुनाते हैं! तस्वीरें तमाम देख, अपनी पहचान को अजनबी बनाते हैं! अपने साथ देर से, इत्तला के फेर में, दूर सब से जाते हैं! यकीन सारे तय हैं, उसके ही सब भय हैं, ख़ुद की ही सब शय हैं!

सुनने की सर्दियाँ!

हमारे अंदर जो बेशकीमती है, उसे अछूता रहना है हमारी सोच से जो हमारे होने को कम करती है| उम्दा होने की जो हमारी लड़ाई है, उससे नहीं बनी नन्हे फरिश्ते सी मनचाही हमारी बानी| जो विचलित करती है फिर अपने पनपने को उस सब के साथ जो जरूरी है| खुद की वो बात जिससे हमे नफ़रत है, और हमें नहीं पता कि वो हममें कहाँ है पर जो तरीकों में नज़र आए, उसको समझाने की जरूरत नहीं| हर किसी के भीतर एक असीम आनंद की किलकारी है जन्म लेने को तैयार| और यहां बड़बड़ाती रात में मुझे सुनाई देती है, अखरोट पेड़ की बच्चे के पालने ऊपर लहलाहट, अपने अंधेरी शाखाओं से हवा में और अब बरसात आकर मेरी खिड़की पर दस्तख़ देती है और कहीं और तारों और हवा की इस ठंडी रात में, वो पहली बुदबुदाहट है, उन छुपी और नज़र न आने वाली वसंत कि अंगड़ाई की, ठहरी गर्मी की हवा की वजह से, हर एक अभी तक अकल्पित, सर उठाती हुई!!

बात खत्म! अब सब ठीक है!!

मंदिर वहीं बनेगा! बात खत्म, अब सब ठीक हो जायेगा। टूटी मस्जिद में राम नाम कब्ज़ा जमाएगा गुम्बज़ चढों को मोक्ष, भाषण बाजों को भारतरत्न, ईंट उठाने वालों को स्वर्ग, और चुप बैठे रामभज हैप्पी गो लकी चैन की नींद सोएंगे आज भी!! संविधान (नदारद) मुबारक हो!! तलाक तलाक तलाक बात खत्म, अब सब ठीक हो जायेगा। जैसे कि पुरा का पूरा मज़हब गंगा नहाएगा शोर ऐसा है जैसे कि आज़ादी आई है? औरतों की, बुर्के वाली, जिनके जांघों के बीच आपने इज्ज़त लुटाई थी, कल भी, आज भी और कल भी, मज़बूरी!! दंगों में करना होता है, बस अब गंगा सफ़ाई है, कानून तोड़! बड़ी हिम्मत आई है बोलो मर्द नली की जय बोलो बोलो बज_ _  _ ली हो भय! ब्लैकमनी, आतंकवाद का खात्मा! बात खत्म, अब सब ठीक हो गया जमीर अमीर हो गया पैसा नीर अकल ठिकाने, चाहे गद्दे नीचे रही या चावल कनस्तर सच मजबूर, सामने आ गया, उसको लाइन लगा मार डाला! मजबूरी गुनाह साबित हुई, कौन थे जिनके घर दावत हुई? और दिन अच्छे? पुलवामा, खून पसीने की कमाई थी? अडानी, अंबानी दिन रात एक एक कमाई थ

देश या छ्दम भेष!

अयोध्या, रामनाम, जन्मस्थान, जरूरी बात पर गरीबी कुर्बान! बाबरी गिराना अपराधी काम, पर १०० खून माफ़, रामनाम! गुनाह कबूल भी और वसूल भी, जिसका दरबार उसका ऊसूल भी! नापाक इरादे आज़ पाक हो गए,  'नफ़रत' वाज़िब जज्बात हो गए! कहने को सबका एक संविधान, कहने को क्या, कहना आसान! बनाने वाले से गिराने वाला बड़ा, धर्म की नैतिकता चिकना घड़ा! रामनाम केवल सच हुआ बाक़ी सच का क्या हुआ? ये लो जमीं, खड़े कर लो अपने यकीं, हमारी ताकत, तुम्हारी क्या औकात ही? उम्मीद ख़राब कर दी, यकीन पर हथोड़े चलाए, चार खंबों ने तंत्र के मिलकर यूँ षड्यंत्र चलाए! इंसान मजहबी, ईमान मज़हबी, शफ़ाहत मज़हबी, मुल्क अजनबी, शहर अजनबी, रिश्ते अजनबी! जमहूरियत कहें किस सूरत, बदनियती,खौफ, शक-सुवा!

मनमंदिर!

उम्मीद छोड़ दी पूरी , आज़ाद हो गए! थोड़े थे आज पूरे ही बरबाद हो गए!! गिले - शिकवे सारे बेआवाज़ हो गए! नफ़रत के खिलाड़ी नाबाद हो गए !! अपने से ही अब सारी शिकायतें हैं! अपने इरादों के दगाबाज़ हो गए !! दिल रखना है बस अपना किसी सूरत! गुम अपने से ही सब सरोकार हो गए !! सराब जितने थे आज़ खराब हो गए! कसर नहीं बची हम पूरे मक्कार हो गए! ! मुगालते नहीं कुछ , पूरे तैयार हो गए ! अपने से किए वादों के बेकार हो गए !! तमाम यकीन थे सब फ़रेब निकले! अपनी समझ के हम नाकार हो गए! ! अब क्या खुद को आईने दिखाएं!   अपने अक्स खुद् को नागवार हो गए !! उम्र से कोई शिकायत कभी न थी! आज और थोड़े हम तैयार हो गए !! जश्न के शोर हैं अपनी ही गलियों में! एक और सफ़र के आसार हो गए !! नश्तर जो भी थे सब सवाल हो गए ! जख्म तमाम अब लाइलाज़ हो गए !!

हर सफ़र हमसफ़र!

हम सफ़र के हमसफ़र हैं हर सफ़र के वास्ते, हर तरह के हमसफ़र हैं हर सफ़र के वास्ते!! चलना तो शुरू कीजिए, कदम आस्ते, आस्ते, मिल जाएंगे हम जब साथ आएंगे अपने रास्ते! साथ चलते चलते बनेंगे हमसफ़री के रास्ते ये सोच कर चल पड़े हम हमसफ़र के रास्ते! क्या चलें, किस मोड़ मुड़ें, आसां नहीं ये रास्ते हर मोड़ पर मिल जाएंगे हमसफ़र के वास्ते! हमसफ़र से जो सफ़र हैं बस सफ़र के वास्ते, कहाँ जाएं, कब पहुंचें इससे नहीं कोई वास्ते! कहां जाएं, कहां पहुंचे और किस के वास्ते? रास्ते कुछ तन्हा, कुछ हमसफर के साथ के!

देश भगती!

अच्छे दिन आए क्या? खुशहाली लाए क्या? ज़मीर जगाए क्या? क्या भारत एक है? क्या हम सहनशील हैं? क्या हम समृद्ध हैं? क्या हम सुरक्षित हैं? भीख़ मांगते बच्चे क्यों हैं? खुदकशी किसानों के सच क्यों हैं? धर्म के नाम के धंधे क्यों हैं? जो कम है वो कमजोर क्यों है? फैसलों में सिर्फ ताकत का जोर क्यों है? कश्मीर में इतनी सेना क्यों है? मंदिर के लिए मस्जिद तोड़ना क्यों है? बलात्कार क्यों हैं? गोरे रंग का भूत सवार क्यों है? मर्दजात रंगदार क्यों है? हर शहर में लाल बत्ती (रेड लाइट) गली क्यों है? मर्द की परिभाषा पैरों के बीच खुजली क्यों है? शिक्षा, स्वास्थ व्यापार क्यों है? हर कोई बिकने को तैयार क्यों है? झूठ इश्तेहार क्यों है? कहाँ फ़ंसा दिये यार, राय पूछते हो जैसे, खाओगे क्या? गाय? पूछते हो! कुछ सवालों के ज़वाब नहीं होते, जो सामने है वो तस्वीर नहीं है, शैतान कलाकारी सोच कर पकाई खीर है, माला पहनी ज़ंजीर है, गलती से लोग गले में डालते हैं, जात के जादूगर, देश्भक्ति का जाल लिये मासूमों को फ़ँसाने में लगे हैं, आज की दौर के ज़लदाद हैं, मुस्करा कर रस्सी लटकवाते हैं, वैसे भी इन

खूबसूरत किस सूरत!?

खूबसूरती, लम्हा है, कोशिश नहीं, नज़र आए, घर कर लीजे, मुगालता, (के) फिर कर लीजे आप भी हिस्सा हैं इसका, पर ये आपकी सिर्फ़ बात नहीं, आपके हाथ से हो, आपके हाथ नहीं! खेल है, मेल का, जोड़तोड़ का, जुड़ने का, मुड़ने का, पंख कोई, किसी के, ले कर उड़ने का खूबसूरती सोच है, सवाल है, एक उम्दा ख़्याल है, वक़्त पर हुआ मलाल है, सिहरन जगाए सो ताल है, जो पलक झपक जाए, मंद मुस्कराए, चुप से छू जाए, हवा हो जाए, खूबसूरती परिभाषा नहीं, यकीन भी है, गुमां भी, खाली हाथ और सामां भी! दो सांसों के बीच एक ख़ाली जगह एक लम्हा रास का, ख़ास सा और पास का!!

सर्दी और सुबह!

फिर आ गयी सिरहाने से, एक सुबह जाग उठी है! आज सुबह बस आई सी है, कुछ ज्यादा अलसाई सी है! छुट्टी मांगी नहीं मिली, सूरज की भी नहीं चली! गुस्से से लाल पीला है, जागा अभी अकेला है! पुरे दिन पर सुबह छलकी पड़ी है, धुप तेज पर सर्दी को हल्की पड़ी है! सर्द रातों को सबक सिखाने, बद्तमीज सुबह जरुरी है?  सर्दी में सुरज की बदतमीजी बड़ी हसीन है, बेशर्म हो कर ज़रा धुप को छू लेने दीजे!! सुबह शाम है और दिन रात भी, सब कुदरत है और करामात भी!

छुट्टी का दिन!

हुई कि नहीं सुबह? दिन निकल आया  रोशनी भी है पर ना सूरज है ना सुबह की चमक? हवा झकझोर रही है, बादल घनघोर रहे हैं, चाय का जायका वही है! पर असर अलग हो गया मौसम छुट्टी वाला है, पर यह कैसे समझे और किसे समझाएं? जुत गए हैं सुबह सब फिर से, कल को आज और आज को कल करने में! वही अपनी हाजिरी भरने में? बैल खेत जोत रही है, गधे घास  चर रहे हैं, भेड़ चाल चल रही है,  और हम इंसान सर्वोच्च प्राणी, आजाद, समझदार, चलिए जाने दीजिए देर हुई तो फिर ट्रैफिक में...

इंसान समझदार!

सुरज की लाली, बादल काली, और इसी में छुपी कहीं हरियाली! और भी रंग हैं पहचाने से, जो हैं, और वो भी जो नज़र नहीं आते, पर आपको सबूत चाहिए, दुनिया अपनी मजबूत चाहिए? पहले जंगल को काट दिया, फिर समंदर को बांट दिया, आसमान में तारे खोजते हैं, फिर पांच सितारा, वातानुकूलित, कमरों में मुट्ठी भर पानी की बोतल खोलते हैं, एक्सपर्ट, उस्ताद, विशेषज्ञ बोलते हैं, हम समझ गए हैं, सिद्द किया है इंसान सबसे समझदार प्राणी है! आप भी समझ गए होंगे? आखिर आप भी इंसान हैं? आख़िर वेदों में लिखा है, ज्ञान से ही मुक्ति है! जल्दी ही!!

मुर्दा जानशीन!

आग जल रही है लाखों सीनों में, गश्त की कैद में सूखे पसीनों से! मन चाहा देखने की इजाज़त नहीं है, 9 हफ्तों से शुक्र की इबादत नहीं है? मुश्किल सवालों की आदत नहीं है! हामी के बाज़ार में बगावत नहीं है! सवाल सारे कवायत हैं रियासत की रवायत हैं, फ़रमान ही भगवान है! ख़बरदार, ये जुर्रत,  क्या औकात! गले पर सरकारी हाथ! ट्विटर पर गाली, न्यूज़ सीरियल सवाली, भीड़ की हलाली, धर्मगुरु दलाली! व्हाट्सएप के खेत हैं डर के बीज नफ़रत के पेड़, मज़हबी भीड़, भेड़! कश्मीर सिर्फ जमीन, सुंदर बेहतरीन, 80 लाख कब्र, ज़िंदा,? करोड़ों जोशीले मुर्दा, जानशीन?

अपनापन!

हम  उन्हीं आवाज़ों से बात करते हैं , जिन्हें हम खुद सुन सकते हैं , और काया बोलती है , और वो बात करती है , सिर्फ़ , उस देह - ए - दुनिया से , जो उसकी पकड़ में है। और वो अपने आप में एक जहां हो जाती है , गौर करके , कि उसका सरोकार क्या है और ये सीखती है , कि उसे क्या होना है , और क्या लाज़मी है! (डेविड व्हाईट की द  विंटर ऑफ़ लिसनिंग से) From  The Winter of Listening by David Whyte in  The House of Belonging