सपनों के हक़ीकत बनने कि बात करते हो, हमने अकीदत को यहां खुदा बनते देखा है! खुद में मसरूफ़ होकर महफ़ूज़ नहीं होते, हमने खुदा को भी तो यहां लुटते देखा है! कल जमाना खुशियों पर मगरूर था, आज उसको लकीर पीटते देखा है! वक्त का घोड़ा हम सब पर सवार है, हमने कब वक्त के उस ओर देखा है? देखी तो हमने भी बहुत सारी दुनिया खुली आंख सुबह तो कुछ और देखा है! वही मातम अपनों को, परायों की नुमाईश है, अपनों से आगे हमने, कहां कुछ और देखा है? माना ये दुनिया हर तरफ़ लक्ष्मण रेखा है, हमने भी पलट कर कहां खुद को देखा है! नफ़रत की क़ैद में अब सारी आशनाई है, पहले कहाँ इतना कुछ नागवार देखा है? डर ने घर बना लिए हैं कितने ज़हन में, बड़े फ़ायदे का किसीने कारोबार देखा है! शक ही काफ़ी है गुनहगार बनाने को, जहां देखा भीड़ का इंसाफ़ देखा है! इंसाफ़ की कब्र पर मंदिर बनते हैं, इस सदी भी ऐसा रामराज देखा है!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।