रंग हर एक को, एक जैसे नज़र नहीं आते,
खुद को कम करने के हज़ार नुस्खे हैं,
बाज़ार भरे हुए हैं बदलते रंगों से!
कुछ चाह कर बदलते हैं,
कुछ आह कर, कराह कर
कुछ न बदले बदलते हैं,
की दुनिया उनकी बदल गई!
खाली पेट फ़ीके रंग, भरी ज़ेब चटक जाते!
खुद से आप किस ज़ुबान में बोलते हैं,
खुद से आप किस ज़ुबान में बोलते हैं,
युँ भी हम सोच का तानाबाना बुनते हैं!!
दुनियादारी ज़ंजीर है गुलामी की,
समझदारी वो जो आज़ाद रखे,
एक ही तरीके सब के बात मशीनी है,
बात वो जो आपको बेबाक रखे!
खुद को कम करने के हज़ार नुस्खे हैं,
बाज़ार भरे हुए हैं बदलते रंगों से!
कुछ चाह कर बदलते हैं,
कुछ आह कर, कराह कर
कुछ न बदले बदलते हैं,
की दुनिया उनकी बदल गई!
शाबाशी दे कर गिरफ़्त में लेती है,
ईनाम में जो मज़ा है,
एक तरह की सज़ा है,
लगाम पर आपकी हाथ किसका है?
आप की दुनिया क्या,
किस दुनिया के आप,
आपके हैं दायरे या,
किन्हीं दायरों में आप!
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें