वो एक खूबसूरत सुबह,
सूरज की रोशनी से चमकती
और उसी की प्रछाई से पुरस्कृत
पास ही में वो बगीचा,
रंगों से सराबोर
सारे रंग
ज़िंदगी के
और सब उतने ही उद्धंड
और
घांस इतनी घनघोर हरित
कि आँख और दिल
दोनों भर आयें,
और उनके पार पहाड
आशा की ओस में नहाए,
एकदम तैयार
ताजगी से चमकते हुए
चलने को तैयार
कितनी मनमोहक सुबह
कितनी मनमोहक सुबह
हर चीज़ सुंदरता से सृजित
संकरे पुल के उपर
बहती धारा के बीच
जंगल के गलियारे में
पत्ते किरणों से
पत्ते किरणों से
चंचलित!
चंचलता
जो उनकी परछाई को
रोशनी दे रही थी
वो सब साधारण पेड़-पौधे थे,
पर
अपनी हरियाली और ताज़गी से
पर
अपनी हरियाली और ताज़गी से
उन्होंने
उन सब पेड़ों को
पीछे छोड़ दिया था, जो
नीले आकाश को
चुनौती देने में व्यस्त थे!
(जिद्दू कृष्णमूर्ति की सुबह की चहलकदमी की अभिव्यक्तियों में से एक का काव्यानुवाद)
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