आपसी रिश्ते सिर्फ़ इंसान से
रिश्तों से खून के
जातीय मकान से
खरीदे सामान से
पसंदीदा पकवान से
पालतू जानवर, या
धर्म की मानकर
और धरती से?
जिसके उपर सब खडे हैं!
क्या हम सब
चिकने घडे हैं?
कहां वो शुरुवात हुई,
जो आखिर हमारी मात हुई?
एक अलग ईंसानी जात हुई
बुद्धि, विवेक,
संवेदना की बात हुई?
और फ़िर लगे जंगल कटने,
जानवर जंगली बन गए,
संरक्षित,
जो बचे हैं,
हमारी दयामाया से,
क्या है हमारी प्रकृति?
हरियाली से हमारा क्या रिश्ता है?
या वो सिर्फ़ एक चीज़ है,
बाज़ार की दुनिया वाली,
इस्केवर फ़ीट के दाम वाली,
या छुट्टिंओं वाली,
हमारे ज़िंदगी के हसीन पलों की,
याद दिलाने वाली,
तस्वीरों की पॄष्ठभूमि?
धरती को माता कहते हैं,
इसे तो नाता कहते हैं!
इंसानी दुनिया को
पालने-पोसने वाली,
फ़िर क्यों ये हाल है?
क्यों प्रकृति बेहाल है?
भूकंप, सुनामी, सायक्लोन,
ज्वालामुखी, जंगल जंगल आग
कहीं ये जज़्बात तो नहीं?
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