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बॉडी लैंग्वेज

अकेले हैं,  कुछ ऐसे ही अपने मेले हैं, फिर भी भीड़ कम नहीं,  ख्यालों के रेले पेले हैं जाने कहां कहां धकेले हैं नज़रों की धक्का मुक्की है, बिन बोले कहीं ये रुक्की हैं कदमों की अपनी मर्जी है, अपनी चाहत के दर्जी हैं हाथ खड़े हो जाते हैं, थक जाते हैं थम जाते हैं और कान लड़े ही जाते हैं, हमको नहीं सुनना ये दुनिया, अब मुंह को कौन संभाले है, भटके है जहां निवाले हैं! नाक न नीची हो जाए, बड़े तहज़ीबी हवाले हैं! एडी, घुटने, कंधे, कोहनी अपनी जुबान ही बोले हैं भीड़ बहुत और कोलाहल, पहचाने सब बोले हैं, साथ हैं सब, मजबूरी के, इस साथ के सब अकेले हैं, कहने को सब मेले हैं!

तीन कदम

गुम हो, गुमसुम हो, रास्ते नहीं मिलते कदम हिचक रहे हैं इरादे खामोश हैं ये कौन मंजिल है? ये क्या हासिल हैं? क्यों मझधार साहिल है, कहां जाएं? पहला कदम! मान जाएं, हवा, पानी,  फूल पत्ते, हरियाली, नील गगन सूरज के आते-जाते अदभुत रंग, आपके लिए है, दुनिया इस ढंग दूसरा कदम, जान जाइए, आप मिट्टी से जुड़े हैं ठीक उसी तरह,  जैसे हर जीवन, सब की यहीं जड़ें हैं, हर एक अधूरा है, मिलकर सब पूरा है, कोई कम नहीं, किसी से, किसी वजह से, किसी भी, तो अब जब चल दिए हैं, पहला कदम, दूसरा भी तीसरा कदम, पहचान जाइए, रास्ते चलने से बनते हैं, चलते चलते रास्ते बनते हैं। चलिए आप अपने सफर, फिर कहीं मिलते हैं!

रास्ते कहिन!

  रास्ते हैं, जिंदगी से यही अपने वास्ते हैं, कहां पहुंचेंगे, ये सवाल बेमानी है, मोड़ आयेंगे,  मुड़ जाइए, कभी भटक जाएंगे कभी खो जायेंगे, ढूंढने आपको रास्ते ही आयेंगे रास्ते आपको कम नहीं करते, न ही साथ छोड़ते, कभी लड़खड़ाए, कभी छिल गए घुटने रास्ते बस कह रहे रुकने, संभलने, जरूरत समझ बदलने! भागते क्यों हैं? करिए अपने कदमों का यकीं!

कौन पहचान!

एक छत चार दीवार घर  गली शहर सुबह शाम चार पहर वास्ते किसके, किससे, साथ, रिश्ते दोस्ती आसमान, जमीन, पेड़ पौधे रंग हजार, ऊंची उड़ान, गले मिलती हवा  धूप सहलाती वास्ते किसके किससे! साथ रिश्ते दोस्ती ये धरा आपकी क्या है आपकी पहचान?

LOVE

Love is an act, Even when it reacts, Its a step,  A step to reach out, to embrace, the possible,  within each of us, and the possible, becomes an act, when a hand reaches out, to hold,  to mold,  the other into one, one with each, the human, the living, the elements wind, fire, water, earth, space, each holding all as one that is the being, that is the message Love Is what holds  all as one.

बे-औकात

जीने की कोई परवा नहीं है, मरने का कोई शौक नहीं, होश संभाला कब हमने, इस बात का कोई होश नहीं! बड़े बढ़िया बढ़िया लोग यहां, कुछ खास भी कुछ पास भी, पर उनको करने को, अपने  पास तो कोई बात नहीं! हंसना रोना सब होता है, पर फिर भी हम जज़्बात नहीं, बड़े गहरे समंदर हैं सब, अपनी कोई बिसात नहीं! मुश्किलें सब नज़र आती हैं, पर कैसे कहें आराम नहीं, लंबी उमर है अपनी शायद, पर ये तो कोई इल्ज़ाम नहीं? (जी रहा हूं बस, जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूं![जिगर मुरादाबादी] ) कितने लोग नजर आते हैं, जिनकी कायनात नहीं, हाथ पे हाथ धरे बैठे हम, के अपने बस की बात नहीं! कोशिश तमाम ज़ारी हैं, अब इंकलाब की बारी है, कहने को हम शामिल हैं पर अपनी वो औकात नहीं!  उम्मीदें हैं नजरों में पर दिल में हैं मायूसी भी, आस बहुत हैं गरीब की, शायद अब वो प्यास नहीं!

मैंटर - एक परिभाषा

 

पागलपन

दिमाग खराब हो गया है, सीधा हिसाब हो गया है! नफरतें वाज़िब बन गई हैं! शराफत नकाब हो गया है! पागल चीखते हैं मरामराम, ये बड़ा ही आम हो गया है! लकीरें दीवार बन गई हैं, बंटवारा आसान हो गया है! भक्ति खून की प्यासी है, श्रद्धा जिहाद हो गया है! मीट खाते बनाते मार डालो, नरभक्षी स्वाद हो गया है! वहशत, दहशत, सियासत, यूं राम का नाम हो गया है! चुप हैं सब धर्म के नाम से, गुनाह आसान हो गया है! "अल्ला ओ अकबर" किसी का, किसी का जय श्री राम हो गया है!

युद्ध वार लड़ाई!

खेल किसका है,  खिलाड़ी कौन है, और इस खेल अपने को लाचार मानता, वो अनाड़ी कौन है? दुनिया सबकी है, दर्शक कोई भी नहीं, आपको तय करना है, आप खेल रहे हैं या खेले जा रहे हैं? मारे जा रहे हैं, बेचारे जा रहे हैं, खबर पड़ रहे हैं, "हमारा क्या", बोल, खुद को नकारे जा रहे हैं! बड़ी ताकतें, धमाकेदार बम, ये सब में लाज़िम सोचना,'कौन हम'? यूं, खुद को'बेचारे' जा रहे हैं! यही है खेल, बड़ी सारी ताकत कम,कमज़ोर, हम?क्या करें? क्यों अपने को सवाले जा रहे हैं! सोच अपनी है, रखें हमदिली, ओ फैलती नफ़रत को जहर बोल पाएं, ऐसे अपने को संभाल पा रहे हैं!!

मेरे प्रियजनों!

 

रंग बेरंग!!

जमीं नहीं रही अपनी, पैर टूट गए, रहसह के बस मेरे पंख छूट गए! उड़ने के सिवा अब चारा नहीं, इस तरह वो मेरे रास्ते लूट गए! खून से अपने ही महक आती है, नफ़रत को सब, अपने जुट गए! बस एक रंग में सब बातें करनी हैं, मेरे आंगन के सारे मौसम उठ गए! कौन कहता है कि दुनिया मेरी हो, लाइब्रेरी से वो शब्दकोश हट गए! मेरे तुम्हारे अब हमारे नहीं रहे, यूं रिश्तों में मायने सिमट गए! सब के सच अब अलग अलग हैं, ये बोल सब महफिल से उठ गए! 

कुछ होना है!

"कुछ होना है" खेल है, दुनिया का! आप खिलौना हैं! सच तमाम है,  झूठ बोलते, उसके सामने आप बौना हैं! आप कम है, क्योंकि कोई ज्यादा है, खेल घिनौना है! कंधे किसी के सीढ़ी किसी को कामयाबी भी बोझ ढोना है! तराज़ू किस के, नाप किसका बाज़ार बड़ा है, आप नमूना हैं! रंग फीका है, ऊंचाई टीका है, वज़न ज्यादा कम मुश्किल होना है! "मैं" पहचान, पीड़ा, अभिमान, बड़ी तस्वीर, आप एक कोना हैं!

पहचानें!!

अपनी नजर से खुद को देख पाएं कभी ऐसा एक आइना बना पाएं! शोर बहुत है मेरी नाप तौल का , कोई तराज़ू मेरा वज़न समझ पाए? छोटा बड़ा अच्छा बुरा कम जादा, वो सांचा कहां जिसमें समा जाएं? नहीं उतरना किसी उम्मीद को खरा! जंजीरें हैं सब गर आप समझ पाएं! मुबारकें सारी, रास्ता तय करती हैं, 'न!' छोड़! चल अपने रास्ते जाएं!! वही करना है जो पक्का है, तय है? काहे न फिर बात ख़त्म कर पाएं? अलग नहीं कोई किसी से कभी भी, ज़रा सी बात जो ज़रा समझ पाएं!!

आसान मुश्किल!

ये जो मेरे जमीन आसमान हैं, ये ही मेरे सपनों के सामान हैं! मुझे कहां पंख लगते हैं, उड़ने? वहीं हूं जहां मेरे अरमान हैं! वो ढूंढे जमीं जो आसमान हैं! पैर कहते हैं पुरानी पहचान है!! फिक्र कहां, कब कहां पहुंचेंगे? चल दिए, वही अपना अंजाम है! खोए हैं, अपनी ही तलाश में, कौन कहता है काम आसान है? बनावट, दिखावट, सजावट सब, महंगा सामान ओ सस्ती दुकान है! अक्स है वो, सब जो तराशते हैं! कब समझेंगे बदलता मकान है!