अकेले हैं, कुछ ऐसे ही अपने मेले हैं, फिर भी भीड़ कम नहीं, ख्यालों के रेले पेले हैं जाने कहां कहां धकेले हैं नज़रों की धक्का मुक्की है, बिन बोले कहीं ये रुक्की हैं कदमों की अपनी मर्जी है, अपनी चाहत के दर्जी हैं हाथ खड़े हो जाते हैं, थक जाते हैं थम जाते हैं और कान लड़े ही जाते हैं, हमको नहीं सुनना ये दुनिया, अब मुंह को कौन संभाले है, भटके है जहां निवाले हैं! नाक न नीची हो जाए, बड़े तहज़ीबी हवाले हैं! एडी, घुटने, कंधे, कोहनी अपनी जुबान ही बोले हैं भीड़ बहुत और कोलाहल, पहचाने सब बोले हैं, साथ हैं सब, मजबूरी के, इस साथ के सब अकेले हैं, कहने को सब मेले हैं!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।