
रात आई सपनों के चल पड़े कारवां, अब ढुँढे तुमको इसमें हम कहाँ
रखा था पलकों में, कब छलक गए
तुम तक पहुँचने में कितने फलक गए
चलो इस सफ़र को अब करें आसमान
..........अब ढुँढे तुमको इसमें हम कहाँ...
साथ थे लम्हे कब एहसास हो गए
हमसफ़र कैसे सफ़र की प्यास हो गए
गुजरे हुए रास्तों को करें आशियाँ
..........अब ढुँढे तुमको इसमें हम कहाँ...
कल थे अरमान फिर क्यों बिखर गए
कौन से थे मोड़ जो अपनी नजर गए
सोच को अपनी करें जरा आसान
.............अब ढुँढे तुमको इसमें हम कहाँ...
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