फिसलते लब्जॊं को थामना पड़ता है,
लम्हॊं का यूँ ही शायरी नाम पड़ता है
लम्हॊं का यूँ ही शायरी नाम पड़ता है
छूने को एहसास करें, चलने को ही प्यास करें,
चलो नए अंदाज़ करें, अब सपनो को पास करें
नहीं तो ..
मुश्किल होने से,
मैं कुछ कम नहीं होता,
मुसाफिर होने के मेरे अंदाज़ ऐसे हैं
कोई मिले-बिछडे मैं अधुरा कम नहीं होता
सुना है ?
क्या बात है कि अपने शब्दॊं का मैं साथ नहीं देता ?
उन लम्हॊं पर क्या गुजरे जिन्हें मैं रात नहीं देता,
आपकी आवाज़ मेरे कहने को अंजाम देती है
वर्ना ये शायर अज्ञात को कभी मात नहीं देता!
तबज्ज़ो का शुक्रिया,
वर्ना हर कोशिश आवाज़ नहीं होती!
कोशिश ...
कब निकले तेरे अरमान,
की ख्वाइश बन गयी आसमान,
इरादॊं के सफ़र की जरा ऊंची कर उड़ान
क्यॊं परेशां होते है शब्दॊं के पहलवान,
शायरी बेहतर अगर,
लफ़्ज़ॊं की वर्जिश में आये जान
उम्र का काम बड़ना है बड़ेगी,
मुश्किल होगी, गर तू लम्हे खर्च करने से डरेगी
तजुर्बे ज़िन्दगी को कहीं पुराना ना कर दें
चल आज फिर कुछ नया कर दें!
Embrace all new experiences with a smile...
कम कुछ नहीं ...
हर मोड़ पर जिन्दगी खड़ी है,कब तक इससे भागेंगे
आँखें खुली है कब से, देखना है कब जागेंगे
खुद को कम जानते हैं,
और कहते हैं खुदा को मानते हैं
मुकम्मल है हर शख्श, ना यकीं हो, तो खाक छानते हैं
बहुत दिन हुए वक्त गुजरते देखा,
पहलु में बैठ, आज खुद को देखा
उम्मीदॊं ने मुड़ कर पीछे नहीं देखा,
ये हालात हैं, आपने देखा?
सच को ही जानते नहीं, उम्मीदॊं को पहचानते नहीं,
आज के सच का बोझ, कल की संभावनाओं को मानते नहीं,
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