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अंदाज़ ए नज़र या नज़र अंदाज़ !




कहने को तो जहाँ है, फिर भी ना बाहर आये क्यों..
करीब सारे निशां है, गोया नजर न आये क्यों...


खुद पर मुसलसल नजर है, कहे मोहब्बत कोई ...
नज़दीक आने का अंजाम, खामियां ही नजर आये क्यों...


हमारी शिकायत हमसे ही होती है बारहा...
मुश्किल में मुश्किलें है, खुद को आसां बनाए क्यों...


यूँ ही नहीं की हमको कोई शिकायत नहीं होती ...
जो जख्म नजर नहीं आते उनको भला दिखाएँ क्यों...


यूँ तो हमको भी शिकवे हैं छोटी-बड़ी बातों के,
यूँ उनको सब मालूम है और हम बतायें क्या!



हमारी भी खूबियां हैं  वो कहते बताएं क्या,
दिल में दी है जगह अब सर पर बैठायें क्या!

रोज किसी न किसी बात पर प्यार आता है,
आदत सी पड़ गयी है, अब इसमें‌ बतायें क्या!!


इरादे यतीम ना होंगे अज्ञात यकीं की जमीं पर..
बंजारे हों जब मिज़ाज़ के, सफ़र मुकां पर आये क्यों...

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साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

जिंदगी ज़हर!

जिंदगी ज़हर है इसलिए रोज़ पीते हैं, नकाबिल दर्द कोई, (ये)कैसा असर होता है? मौत के काबिल नहीं इसलिए जीते हैं, कौन कमबख्त जीने के लिए जीता है! चलों मुस्कुराएं, गले मिलें, मिले जुलें, यूं जिंदा रहने का तमाशा हमें आता है! नफ़रत से मोहब्बत का दौर चला है, पूजा का तौर "हे राम" हुआ जाता है! हमसे नहीं होती वक्त की मुलाज़िमी, सुबह शाम कहां हमको यकीं होता है? चलती-फिरती लाशें हैं चारों तरफ़, सांस चलने से झूठा गुमान होता है! नेक इरादों का बाज़ार बन गई दुनिया, इसी पैग़ाम का सब इश्तहार होता है! हवा ज़हर हुई है पानी हुआ जाता है, डेवलपमेंट का ये मानी हुआ जा ता है।