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सोच की गड़बड़ या फ़क्त बड़बड़!



होर्न का तेवर
मिनस्टर का फ़ेवर,
ड़ॉवरी का वर,
जिंदगी आपकी क्यों दूसरे ड्राईवर
'मर्द' नाम है जात है नर,
सत्यानाश दुनिया, जा मर!


कम उम्र में निकलते बच्चों के पर,
जल्दी सीख गये गुटर-गूँ कबूतर,
हाथ में मोबाईल पर कंधे पे सर?
क्या अपनी चाल पे है
शीला आंटी का असर?
कहते हैं अपनी मर्ज़ी है,
पर खबर नहीं कौन दर्ज़ी है,
ज़ेब खर्च है और महंगाई अर्ज़ी है,
किसको दोष दें सच्चाई फ़र्ज़ी है,

घुटने में सर ड़ाल के पड़ो,
ज़िंदगी जंग है, अपनों से लड़ो?
अभी बच्चे हो जरा बड़ो,
रिश्ते खून होते हैं,
दोस्त जुनून, सोचो
मुसीबत में कौन सुकून,
हमारे हाथ में नहीं कुछ,


जो मरज़ी हुकूम!
दोस्ती छुप-छुप के करेंगे,
जो हाथ आया उस पे मरेंगे,
दोस्ती सौगात होती है,
पर रिश्ता बने तो उसकी जात होती है,
इज़्ज़त सिर्फ़ ताकत की लात होती है,

वरिष्ठ, बुज़ूर्ग, बड़े सब चिकने घड़े,
मान्यताओं मे अटके, परंपराओं में गड़े,
छोटों की सच्चाई बेमानी है,
हमने भी प्यार किया था . . .
तेरी-मेरी माँ की . . .

राय किसने पुछी थी?
सच में वो गाय थी
पर आप, बाप रे बाप,
जिंदगी भर खूँटा बने रह गये,
जाहिर है, बस बाँधना आता है,


उपर से ये सवाल,
कहां जा रही है ये दुनिया?
आज-कल के जवान?
क्या आयेंगे किसी काम?
कौन होगा बुढापे का राम?
शऊर नही है?
अब तो अल्लाह मालिक है?


कमबख्त बड़े,
सब के सब पंसारी हैं,
तौलना जारी है,
कोई मालिक है
कोई देने वाला
कोई लेता है,
(हमरी तो पूरी ले रक्खी है)
ये कम है, वो ज्यादा,
यहाँ रुकना चाहिये,
वहाँ झुकना,
कहीं सर, कहीं घुटना,
बेड़ गर्ल, गुड़ बॉय,

क्या है आपकी राय?
कच्ची, अधपकी,
अल्हड़, अधूरी, भटकी
'पता नहीं' से ढकी,
कब आयेगा वो वक्त
जब सबकी दाल गलेगी
बच्चे हों या कच्चे,
सबकी बात चलेगी,
आईने सच्चे होंगे,
छोटे-बड़े, अच्छे-बुरे, कम-ज्यादा नहीं,
किसी की सोच के नालायक नहीं,
बुड़ापे की ट्रॉफ़ी नही,
लड़की होने की माफ़ी नहीं
बच्चे सिर्फ़ बच्चे होंगे!
क्या आप उनके सच्चे होंगे?







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