सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मुसाफ़िर-संगी-साथी!



इमरोज़
 एक और लड़ाई है, अब
इसका नाम पड़ाई है!
मैदानों में खड़े होकर, अपनी
हिम्मत से बड़े होकर, चड़कर
सीड़ियाँ,
जो कभी तो नज़र नहीं आती!
और कभी लोग तोहफ़े में देते हैं,
यकीन है हमेशा से,
कभी मेरा, कभी लोगों का मुझमें,
जो अकेला नहीं होने देता,
हमेशा साथ है,
कभी मेरा जुनून,
कभी मेरी जरुरत,
जुड़ने की,
अपने से,
और सच्चाईयों से जो जरूरी हैं,
सब की जगह है दुनिया में,
और सबके हिस्से आसमान
मिलेंगे,
सफ़र अभी ज़ारी है

सैम और सैरा (Sam and Sarah) का,
थकना सिर्फ़ एक विचार है,
साथ ले कर निकलें वो अचार नहीं,
और रुकना एक भ्रम,
क्योंकि साँस चलती है,
और उसके बाद . . .
कही-सुनी बातें मत करिये,
क्या सपने नहीं‌ आते?
आँखों‌ देखा सच होता है,
कहते हैं ना,
जवानी आती उम्र के साथ है,
और जाती है इरादों से, यानि,
कम होने से, और सच कहें तो
सफ़ेद बालों की जवानी,
उसका कोई सानी नहीं,
जोश, जुनून और
समझ,
जो आपको नज़र देती है,
सिर्फ़ नज़रिया नही,
तो चलिये,
जिंदगी से मिलते हैं,

आज़

जिनका है ज़माना,
वो क्यों खोये है?
और इरादों को तलाशते
क्यों भटकते हैं,
जाहिर है सच्चाई साफ़ नहीं है,
पर ये कोई गलती नही
जिसको माफ़ नही है!
फ़िर क्यों
बार बार अपने को दोष,
गलत कुछ नही,
जो भी है
दिशा और दशा
दोनो हमसफ़र है,
तो क्या जो कभी-कभी बात,
हाथ नहीं होती,
साथ नहीं होती
सफ़र लंबा है, और
कभी कभी अकेला होना
जरूरी है,
अपना साथ देना भी,
अक्स और परछाई
आपकी बनाई है,
बुनाई है,
आपके अनुभव और सोच की,
आपके हाथ है, बदल लीजे!



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

पूजा अर्चना प्रार्थना!

अपने से लड़ाई में हारना नामुमकिन है, बस एक शर्त की साथ अपना देना होगा! और ये आसान काम नहीं है,  जो हिसाब दिख रहा है  वो दुनिया की वही(खाता) है! ऐसा नहीं करते  वैसा नहीं करते लड़की हो, अकेली हो, पर होना नहीं चाहिए, बेटी बनो, बहन, बीबी और मां, इसके अलावा और कुछ कहां? रिश्ते बनाने, मनाने, संभालने और झेलने,  यही तो आदर्श है, मर्दानगी का यही फलसफा,  यही विमर्श है! अपनी सोचना खुदगर्जी है, सावधान! पूछो सवाल इस सोच का कौन दर्जी है? आज़ाद वो  जिसकी सोच मर्ज़ी है!. और कोई लड़की  अपनी मर्जी हो  ये तो खतरा है, ऐसी आजादी पर पहरा चौतरफा है, बिच, चुड़ैल, डायन, त्रिया,  कलंकिनी, कुलक्षिणी,  और अगर शरीफ़ है तो "सिर्फ अपना सोचती है" ये दुनिया है! जिसमें लड़की अपनी जगह खोजती है! होशियार! अपने से जो लड़ाई है, वो इस दुनिया की बनाई है, वो सोच, वो आदत,  एहसास–ए–कमतरी, शक सारे,  गलत–सही में क्यों सारी नपाई है? सारी गुनाहगिरी, इस दुनिया की बनाई, बताई है! मत लड़िए, बस हर दिन, हर लम्हा अपना साथ दीजिए. (पितृसता, ग्लोबलाइजेशन और तंग सोच की दुनिया में अपनी ...