सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

नापाक मोहब्बत




ढाई आखर रट-रट के सबको दिये बताये,
लिये एसिड़ घुमत है चेहरा कोई मिल जाये!

लगे लूटने इज्जत इतनी कम पड़ती है,
मर्दों की दुनिया की ये कैसी गिनती है?






कम कपड़े थे, इज्जत कम थी फ़िर भी लुटे
बड़े भिखारी मर्द, प्राण कब इनसे छूटे?

हाय सबल पुरुष तेरा इतना ही किस्सा,
आँखों में है हवस और हाथों में हिंसा?

हाय अबला नारी तेरी यही कहानी,
फ़िल्मों में पैसा वसूल है तेरी जवानी!

घर में ही आईटम बन के रहना,
बाहर भुगतना है मर्दों की नादानी!

लातों के भूत बातों से नहीं मानते,
परिभाषा है मर्द की, जो नहीं जानते!

नहीं चलती कहीं तो औरत का शिकार है
मर्द होना बड़ा फ़ायदे का व्यापार है!

कमज़ोरी मर्द की औरत के गले फ़ंदा है,
आदमी कौन सी सदी का भुखा नंगा है!

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

जिंदगी ज़हर!

जिंदगी ज़हर है इसलिए रोज़ पीते हैं, नकाबिल दर्द कोई, (ये)कैसा असर होता है? मौत के काबिल नहीं इसलिए जीते हैं, कौन कमबख्त जीने के लिए जीता है! चलों मुस्कुराएं, गले मिलें, मिले जुलें, यूं जिंदा रहने का तमाशा हमें आता है! नफ़रत से मोहब्बत का दौर चला है, पूजा का तौर "हे राम" हुआ जाता है! हमसे नहीं होती वक्त की मुलाज़िमी, सुबह शाम कहां हमको यकीं होता है? चलती-फिरती लाशें हैं चारों तरफ़, सांस चलने से झूठा गुमान होता है! नेक इरादों का बाज़ार बन गई दुनिया, इसी पैग़ाम का सब इश्तहार होता है! हवा ज़हर हुई है पानी हुआ जाता है, डेवलपमेंट का ये मानी हुआ जा ता है।