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बदलती पहचानें!


घर बैठे बदल रहे हैं,
नये खेल चल रहे हैं,
डर अब समझदारी
ये चाल चल रहे हैं! 

ताकत की दुकान है, 
बड़ी लंबी लाईन है! 
डर खरीद कर सब
अब निकल रहे हैं!!


बेबस सुबह है रोशनी के बावज़ूद, 
आईने सब पूछते हैं क्या वजूद?

प्यार ही बचाएगा, प्यार ही जगाएगा, 
दूर हो या पास, प्यार से हो जाएगा!

गलत करने को अब गम काफ़ी हैं,
बहक जाएं कदम अब तो माफ़ी है?


सवाल हैं हर तरफ़ आप पूछना चाहें तो,
सवाल ये है कि आपकी नज़र में क्यों नहीं?

जो सामने हैं वो सवाल है, हाल नहीं,
आप पूछेंगे या माकूल हालात नहीं?





अपनों कि परिभाषा इतनी तंग क्यों है?
दुसरे को गैर बना दें, ऐसे ढंग क्यों हैं?
सोच उड़्ती है या सिकुडती है?
जोडती है या बिखराती है?
बवज़ह नहीं हैं आसमान,
आपकी नज़र कहां जाती है?
नफ़रत गर जवाब है तो सवाल क्या था?
तंग कर दे नज़रिया वो ख्याल क्या था?


वादे ईरादे हैं क्या? या सिर्फ़ बातें हैं?
नीयत साफ़ नहीं, एक यही सच बचा है!

आईने अलग, तस्वीर अलग, मैं एक कहाँ? 
जैसे-तैसे, जहां-तहां, यहां-वहां, कहाँ- कहाँ?

मैं ही मैं में मैं कहां रहा?
एक अफ़सोस, जो रहा!

तमाम सच से मैं और "मैं" उसमें एक,
हावी ने हो जाऊं खुद पे ये काम अनेक


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साफ बात!

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मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

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