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सरकारी सरकार!

सब व्यवस्था सरकारी है,
सारा इंतजाम 
परदेश से घर लाए
जहाज सरकारी थे,
और मज़दूर चढ़ नहीं पाए
वो बस ट्रेन सरकारी है





भूख सरकारी नहीं है,
डर और चिंता भी!
लोकडाउन सरकारी है,
बीमारी सरकारी है!!
सड़क सरकारी है,
चलने वाले नहीं,
मरने वाले रास्ते में
अपनी मौत मरे हैं!
मरने वालों की लिस्ट सरकारी है,
हस्पताल सरकारी है,
डॉक्टर नर्स भी,
जो शिकायत कर रहे हैं,
वो उनकी निज़ी बात है,
जिस कमी की बात है,
वो कमी सरकारी है,
आपसे मतलब?
सूचना सरकारी है,
जानकारी सरकारी है,
उसके अलावा कोई कुछ कहे,
तो जेल सरकारी है,
पुलिस सरकारी है,
उनके डंडे सरकारी हैं,
डंडों के निशान आपके,
चोट का दर्द आपका,
जो गालियां आपने खाईं,
वो सिपाही की थीं, पर
उनका गुस्सा सरकारी है!
कानून सरकारी है,
सुप्रीम कोर्ट के जज
सरकारी हैं, फैंसले
सरकारी हैं, आपको
अगर गलत लगें तो,
आपकी अपनी राय है,
आपकी मन की बात,
दो कौड़ी की नहीं,
सरकार जो कहे,
गलत या सही,
वो बात सरकारी है!
सरकार माई-बाप है,

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साफ बात!

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मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

गाज़ा की आवाज़!

 Translation of poem by Ni'ma Hasan from Rafah, Gaza, Palestine (https://www.facebook.com/share/r/17PE9dxxZ6/ ) जब तुम मुझे मेरे डर का पूछते हो, मैं बात करतीं हूं उस कॉफी वाले के मौत की,  मेरी स्कर्ट की जो एक टेंट की छत बन गई! मेरी बिल्ली की, जो तबाह शहर में छूट गई और अब उसकी "म्याऊं" मेरे सर में गूंजती है! मुझे चाहिए एक बड़ा बादल जो बरस न पाए, और एक हवाईजहाज जो टॉफी बरसाए, और रंगीली दीवारें  जहां पर मैं एक बच्चे का चित्र बना सकूं, हाथ फैलाए हंसे-खिलखिलाए ये मेरे टेंट के सपने हैं, और मैं प्यार करती हूं तुमसे, और मुझमें है हिम्मत, इतनी, उन इमारतों पर चढ़ने की जो अब नहीं रहीं,, और अपने सपनों में तुम्हारी आगोश आने की, मैं ये कबूल सकती हूं, अब मैं बेहतर हूं, फिर पूछिए मुझसे मेरे सपनों की बात फिर पूछिए मुझसे मेरे डर की बात! –नी‘मा हसन, रफ़ा, गाज़ा से विस्थापित  नीचे लिखी रचना का अनुवाद When you ask me about my fear I talk about the death of the coffee vendor, And my skirt  That became the roof of a tent I talk about my cat That was left in the gutted city and now meo...