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श्रमिक स्पेशल!


भूख भूख भूख भूख
प्यास प्यास प्यास प्यास
ये शेर है, ग़ज़ल का
कविता बहुत बड़ी है,
आपकी आंखें खुली हों जो
आपने पहले ही से पड़ी है!


रोटी रोटी रोटी रोटी
पानी पानी पानी पानी
किसी की थाली में
कहीं नाली में,
किसी को बस सपने में
किसी के खाली पेट की गुहार है
किसी की आंखों में गुहार है,
देशप्रेम की बात 
अब घटिया बेकार है!



ख़ाली ख़ाली पेट, सूखे सूखे ओंठ
बेबस श्रमिक, प्लेटफॉर्म की लूट,
सरकार बस झूठ, फरेब, झूठ
बड़े हुए तो क्या हुए, मोदी शाह हुजूर?
पैदल भी मजबूर थे, ट्रेन में भी मजबूर?
बड़े हुए तो क्या हुए, दिल छोटे हुजूर,
श्रमिक ट्रेन में भूखे, खुद अख़रोट खुजूर!



लाईन लाईन लाईन
लाठी लाठी लाठी
दोहा छंद चौपाई,
पैसा दे मेडिकल, लंबी लाईन लगाई,
पुलिस थाने में अर्ज़ी,
लंबी लाईन लगाई
मुफ़्त में लाठी खाई
पन्द्र्ह दिन में बारी आई, 
समेट पूरे संसार को, 
स्टेशन लंबी लाईन लगाई,
सरकार की मेहरबानी, 
दो दो पूरी आई
सरकार सरकार सरकार,
बेकार बेकार बेकार,
नीयत ख़राब,
पैदल को लाठी,
ट्रेन को किराया,
दो दिन का सफर
घंटों रुका कर
पाँच दिन कराया


लॉकडाउन लॉकडाउन लॉकडाउन 
किराया किराया किराया
खाली डब्बे, खाली ज़ेब, 
गज़ल कलाम शेर, 
महामारी, महाकाव्य, महाभारत, 
नैतिक जिम्मेदारी नदारत 
बेहया, बेशरम, बेगैरत
श्रमिक स्प्पेशल  में
जच्चा बच्चा दोनो
ठिकाने हुए!
बीमारी पुरानी थी
सरकारी बहाने हुए

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साफ बात!

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