सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

यही होता आया है!




जो जहां है वो वहीं रहेगा!
जो होता आया है वो ही होता रहेगा?

कहने को लॉकडाउन है!
नया क्या है?
पुरानी सामाजिक व्यवस्था है!
सदियों से, लाखों को
किसने छुआ है?
या छूने दिया है?



मजदुर रास्ते में अटके हैं,
यूँ कहिए रास्ते में भटके हैं,
अधर में लटके हैं,
न घर ने घट के हैं
टूट गये जो अभी तक चटके हैं,
रोज कमाते थे,
कुछ खाते कुछ गंवाते थे,
बस्ती में, कौन
वसूली को आते थे,
कल के भरोसे आज थे,
और कल किसने देखा है?
आगे की क्या सोचें
आज भी, वही लक्ष्मण रेखा है!


बीमार हस्पताल में हैं,
घेरों में सवाल के हैं,
जात क्या है, ध्रम?
झुग्गी वाले!! बाप रे!

क्या बदल रहा है?
बीमारी नहीं,
बीमार को दोष है!
बीमार अछूत है,
और डॉक्टर, नर्स भी!
(करो घर खाली)
हमारे दिमाग अब भी
वर्तमान भूत है!
छूत-अछूत है!


ज़ाहिर है लोग छुपाते हैं,
चुपचाप खामोशी से
कोरोना फैलाते हैं!

पकड़े न जाएं,
विदेश सफर से,
बुखार उतार दवाई
खा कर आते हैं!


क्रोनोलॉजी समझिए,
बुखार - टेस्ट - पॉज़िटिव
अछूत - अस्पताल
सरकारी
गंदे टॉयलेट,
लांछन, शर्म, दोषःरोपण
अपराधबोध
समाज में धब्बा!
किस की मति मारी है
जो कहे मेरे पास बीमारी है?

वही हो रहा है,
जो होता है,
जब नफ़रत फलती है
जमीर सोता है!


इसलिए दोषी वो ही सब हैं,
पहचाने चहरे!
मुसलमान जमात,
मजदूर समाज,
बस्ती मजबूर!
घर से दूर,
चलें तो लाठी है,
रुकें तो खैरात,
बेकार है इज्ज़त की बात!


और सफेदपोश, शरीफ़, संभ्रांत!
घर बैठे, मेहनत के काम,
बजा ताली, दिये तमाम!
बेसब्र,
कब टीवी पर शाबाशी आएगी!
मेहनत से अपनी अब रामराज लाएंगे,
पूरी एकाग्रता से
दिन दो रामायण टिकाएँगे!

सेहत दिमाग की बेहाल है,

ऊपर से नीचे तक बुरे हाल हैं,

पर मानसिक तो अपने यहां,
बीमारी नहीं हैं
दिल की चोट की तामीरी नहीं है!

गम गलत होने को
सब लाईन लगाते हैं,
दारू की दुकान से
खुशीयाँ लाते हैं!
और वही पुरानी प्रथा,
हिंसा और औरत की व्यथा!

क्या बदला है?
यही होता आया है!
यही है राम राज्य कथा!


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

जिंदगी ज़हर!

जिंदगी ज़हर है इसलिए रोज़ पीते हैं, नकाबिल दर्द कोई, (ये)कैसा असर होता है? मौत के काबिल नहीं इसलिए जीते हैं, कौन कमबख्त जीने के लिए जीता है! चलों मुस्कुराएं, गले मिलें, मिले जुलें, यूं जिंदा रहने का तमाशा हमें आता है! नफ़रत से मोहब्बत का दौर चला है, पूजा का तौर "हे राम" हुआ जाता है! हमसे नहीं होती वक्त की मुलाज़िमी, सुबह शाम कहां हमको यकीं होता है? चलती-फिरती लाशें हैं चारों तरफ़, सांस चलने से झूठा गुमान होता है! नेक इरादों का बाज़ार बन गई दुनिया, इसी पैग़ाम का सब इश्तहार होता है! हवा ज़हर हुई है पानी हुआ जाता है, डेवलपमेंट का ये मानी हुआ जा ता है।