सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अदने से सच!


ग़रीबी ने चलना शुरू किया
रास्ते लुट गई,
अकेली थी,
बेचारी हो गई,
ये कैसी हमको बीमारी हो गई?

मजदूर था,
घर से दूर था,
फ़िर मजबूर हो गया,
चलते चलते,
खून सारा पानी हो गया,
बिन ईद कुर्बानी हो गया!


पैर छोटे थे,
और रास्ते लंबे हो गए,
हड्डियां बोलने लगीं,
पैरों के छालों से,
पिचके गालों से
ये नए खेल!

कमजोरी कंधे सवार हो गई,
और सारी जमापूंजी,
बोझ बन गई,
टूटते कंधों में
फिर भी उम्मीद है,
सपने भी,
इज़्ज़त के साथ मरने के!


और घर की बात घर में
तालाबंद है,
सात जनम का संग है,
थप्पड़ ओ लात,
फ़िर हुई मुलाक़ात
नई बोतल के साथ!



देशभक्त,
अनुशासन युक्त,
एक वर्ग, खुश है,
इस मुश्किल दौर में
सोच मुक्त है,
सरकार से कंधा मिलाए,
देश चल रहा है, बढ़िया से
घर बैठे! रामराज्य!!

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

जिंदगी ज़हर!

जिंदगी ज़हर है इसलिए रोज़ पीते हैं, नकाबिल दर्द कोई, (ये)कैसा असर होता है? मौत के काबिल नहीं इसलिए जीते हैं, कौन कमबख्त जीने के लिए जीता है! चलों मुस्कुराएं, गले मिलें, मिले जुलें, यूं जिंदा रहने का तमाशा हमें आता है! नफ़रत से मोहब्बत का दौर चला है, पूजा का तौर "हे राम" हुआ जाता है! हमसे नहीं होती वक्त की मुलाज़िमी, सुबह शाम कहां हमको यकीं होता है? चलती-फिरती लाशें हैं चारों तरफ़, सांस चलने से झूठा गुमान होता है! नेक इरादों का बाज़ार बन गई दुनिया, इसी पैग़ाम का सब इश्तहार होता है! हवा ज़हर हुई है पानी हुआ जाता है, डेवलपमेंट का ये मानी हुआ जा ता है।