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जून, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छान-बीन?

रिश्ते चुनते हैं‌ हम को, कि हम रिश्तों को चुनते हैं, रिश्ते बुनते हैं हम को, कि हम रिश्तों को बुनते हैं! अपने बनते हैं युँ ही, कि युँही बनते हैं अपने हैं, सुनते हैं जो  हम  कहते, या कहते हैं हम सुनते हैं नाम किसका है और क्यों खुद को सामान करते हैं, कुछ खबर है आप को युँ खुद को दुकान करते हैं! नज़र इरादों को जगाती है, उम्मीद अभी बाकी है, युँ छोड़िये फ़िक्र करना तनिक भी, अभी बेबसी काफ़ी है! लंबी उमर है क्या जल्दी है नाउम्मीदगी की,  दो-चार दिन जरा कोशिश के लुत्फ़ ले लो! उम्मीद पलती है गहरे अंधेरे कोनों में, क्या रखा है मुलायम से बिछौनो में! बुरे हालात हैं पर भी मुस्कराते हैं, जानते हैं ये सच ही झूठी बातें हैं! खामोशी सुनती नहीं, आवाज़ों ने बहरा कर दिया, मेरी सोच ने ही, मेरी आज़ादी पर पहरा कर दिया!  वही दिखेगा सामने जो नज़रिया कर लिया आंखें बंद की और अंधेरों को गहरा कर लिया! इरादे सफ़र को निकले हैं, रस्ते इबारत करने,  मुश्किलें हों भी तो रंग तजुर्बों के नफ़ासत करने! इबारत की इज़ाजत है, या की कोई हिमाकत है, अधुरे रह गये सफ़र और बस थोड़ी हरारत है!

फ़िक्स ड़िपोज़िट!

जहाँ दिखे कोई छोटा , बड़े बनते हैं , करने को और छोटा मुर्दे गड़े चुनते हैं , जिंदगी बच्चों का कोई खेल नहीं है , हमने देखा है , तजुर्बे का कोई मेल नहीं है , आदर से सर झुकाओ , बेफ़ज़ूल सवालों पर ताला लगाओ , जमीं पर तुम्हारे पैर नहीं हैं , आसमां तुम्हारी ओर नहीं है , . . .खामोश ! मेरा सच कुछ और है , पर मेरे इरादे मासूम है , और मेरी आवाज़ में कहाँ वो जोर है , ज्यादातर बचपन इन बातों में दल जाते हैं , कुछ फ़िर भी इन तंगसोची से परे आते हैं , और फ़िर ये शिकायत कि दुनिया ठीक नही चल रही बच्चे बुज़ुर्गों का मान नही करते , भूल गये बच्चे अब बड़े है , आपकी तमाम कोशिशों के बावजूद , और बड़े मान नहीं करते , अपने हर फ़र्ज़ का दाम करते हैं , नहीं यकीन तो खुद को सुन लो , " कितना त्याग किया तुम्हें बड़ा करने में " " बुखार तो रात रात  ठंड़ी पट्टी लगाई थी " " और कंधे पर धरकर झांकी दिखाई थी " “ और मां ने नौ महीने पेट में रखा था " जैसे बच्चे नहीं कोई बैंक का खाता हैं , अभी जमा किया बाद में सूद आता है! क्या आपका अ

तमाम तस्वीरें!

तलवारों की ही धार हज़म करते हैं, युँ जिंदा उऩ्हें उनके जख्म करते हैं! उम्मीद ही को अपनी कसम करते हैं, अपनी ही मुश्किलों को तंग करते हैं! सच हो गये गुमशुदा पैसों के गलियारे में, खबरें पकती हैं तिज़ोरी के अंधियारों में! आँखे भींच ली कौन कहे अंधियारे में, खबर आयेगी तब सोचेंगे इस बारे में! फ़िज़ूल सब बोलियां आपकी, ये बिकने वाली चीज़ नहीं, वो कोई और दौर था, अब सच को कोई अज़ीज़ नहीं! वो जायके और थे जब हिम्मतों के दौर थे, खुली हवाओं के अब कोई वैसे मरीज़ नहीं! बड़ी शान से सब अपना धरम होते हैं, किसको फ़ुर्सत देखे, क्या करम होते हैं! झुका दिये सर जहां पत्थरों में रंग देखे बड़े संगीन बुतपरस्तों के भरम होते हैं! खुली दुकान है मुसाफ़िर सामान है, कीमत अजनबी मेहमान है, लगा लीजिये आपको जो मोल लगे, ये सौदा बड़ा आसान है! काम आसान हो कि चंद दरवाज़े खुले रखिये, अपने लूटेरों के लिये दिल में थोड़ी जगह रखिये क्या फ़रक पड़ता है कि तुम खुश हो, जिंदगी समझने लगे तो क्या तीर मारा, ये कहो कि चलते हुए कंकड़ चुभते हैं, और नज़र में कोई पौधे हैं जो उगते हैं!  आखिर किस बात का

यकीं यूँ कि. . . !

वो भी अज़नबी था और तू भी अज़नबी है, तख्त पलटा भी है या ये झूठा यकीं है? यकीं का खुदा कौन हो, यकीं को जमीं कौन हो अज़नबी का यकीं करें फ़िर अज़नबी कौन हो? तमाम यकीं है और युँ ही तमाम होते हैं, आँखें बंद है और उम्मीदों पे जवाँ होते है! तख्त की बात करके क्यों अज़नबी करते हैं, दिल में रखिये दिल का ही यकीं करते हैं! अपने पर ही यकीं रखिये लंबे साथ आयेगा, पैर फ़िसले भी तो दूसरे का नाम नहीं आयेगा! इतना कीजे यकीं कि उसको भी आ जाये लड़खड़ाते पैरों को जैसे जमीन आ जाये! रंग आसमां के जमीं के, थोड़े कुछ आपके यकीं के नज़र बायें करिये ज़रा, रंग और भी हैं जिंदगी के! अब ये ना कहिये कि बेवजह नुक्ताचीनि करते हैं, नमक आपका है, हम बस जरा नमकीं करते हैं!

मेरे घर आना. . . जिंदगी!

ज़िंदगी , जिंदगी , ओ जिंदगी . . .  मेरे घर आना  .... आना जिंदगी ,  जिंदगी तमाम रस्ते हैं चलने को , छोटे पड़ते हैं खुद से मिलने को कितने दूर ले जायें अदनी हकीकतें , किस मोड़ मिले अपना आईना आना जिंदगी , मेरे घर आना . . . अपने साथ के सब अकेले हैं , अपनी नज़दीकियों से खेले हैं , रिश्तों का मुश्किल नाम रखा है , क्यूँ नहीं बदलता , बदलता मायना . . . आना जिंदगी , मेरे घर आना . . . रिश्ते लंबाइयों के मोहताज़ नहीं , दो पल का साथ क्या साथ नहीं , चंद लम्हों के लिये जुड़ जायें , करें मुमकिन साथ गुनगुनाना आना जिंदगी , मेरे घर आना . . . टूटी खबरें सारी , क्या जोड़ पायेंगी कब अपनी मुस्कानें हमें रुलायेंगी चलिये अपने यकीन को पालें , पा लें , गुज़ारिश है कहें हमको दीवाना , आना जिंदगी , मेरे घर आना . . . 

दाम दमन !

हट्टे - कट्टे सारे इकट्ठे , शॉपिंग की तो जेब कटे दाम चीजों के बड़े - बड़े लुट गये बाज़ार में खड़े - खड़े चिल्लर साली संभाल तू दाल - रोटी के पड़े लाले सपनों पे अब लगे ताले , स्कूल की फ़ीस ,  सेहत /health  को चीज़ उपर वाले से पुछें क्या  "what's up re” ढीली कमर से खिसके है चड़्डी - चड्डी साला इज्जत उतारने को  always ready हर एक रेट कमीना होता है , बड़ा सस्ता आज कल पसीना होता है , मुश्किल मंहगाई में जीना होता है बड़ा लंबा हर एक महीना होता है , उंची दुकान और फ़ीके पकवान पैसा भगवान और पैसा पहलवान दो कौड़ी का ईमान रे dogy  लार टपका बोले  "what's up re” देख मुँ में मेरे हड़ड़ी - हड़डी साला इज्जत उतारने को  always ready हर एक रेट कमीना होता है लड़्डु - पेडा जैसे नगीना होता है , दुसरे को लूट कर ही जीना होता है हर एक रेट कमीना होता है अपने ही हाथों वो खुद को मारें खेत सूख गये जो इनके सारे पैसा सरकार है ,  मेहनत बेकार है शहरों में आयेंगे ,  स्लम नयी बनायेंगे खायेंगे रोज़ अमीरों की गाली हर एक रेट कमीना होता है

आदमी और आमदनी!

बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ , आदमी हुँ आमदनी से प्यार करता हूँ , एक तिज़ोरी बन गया दुनिया के मेले में , पैसे दिखते कोल में , ड़ब्बे में रेलों के , मुस्करा के नोट सब स्वीकर करता हूँ आदमी हुँ आमदनी से प्यार करता हूँ हूँ बहुत नादान करता हूँ ये नादानी भाई भतीजे मेरे और मेरी ही मनमानी हाथ खाली हैं मगर व्यापार करता हूँ आदमी हूँ  . . . क्या हुआ जो फंस गया हूँ एक स्केंड़ल में , खुश करुँ लक्ष्मीजी सोने की केंड़ल से इस तरह में टीम अपनी तैयार करता हूँ आदमी हूँ  . . . मैं बनाना चाहता हुँ स्वर्ग धरती पर , ले लो तुम कॉन्ट्रेक्ट इसका टेंड़र भर - भरकर , 3G का नेटवर्क मस्त तैयार करता हूँ आदमी हूँ आमदनी से प्यार करता हूँ  . . . https://www.youtube.com/watch?v=rEuGYVAQutY स्टार प्लस के ड़ांस शो को promote करने के लिये करंट इशूस के उपर व्यंग करने के लिये शो के पार्टिसिपेंट चावट बोयस के लिये लिखे गाने!

शीला की कहानी!

मर्दों की दुनिया सारी , घूरने की है बीमारी , शरम कभी न आनी माने न माने कोई , भाई – भतिज़ों की दुनिया बड़ी सुहानी माँ - बहनें घर में बैठें , बाहर कुछ और कहानी अब दिल करता है हौले हौले से किसी कि भी गले पड़ जायें , रिश्तों का मर्दों को बंधन क्या , बस अपना प्यार जतायें माँ कसम , माँ कसम , माँ कसम my name is शीला , शीला की बदनामी , रज़िया गुंड़ो में फ़ंस गयी और मुन्नी की नादानी गली गली गली के लड़के मुझे फ़ोलो फ़ोलो करते हें और जब में नज़र फ़ेरुं , बस ताने कसते हें , बेशरम , बदतमीज़ मरदुए हाय रे ऐसे चेपू हम , फ़ेविकोल बन चिपकें रे कितने तुम कपड़े पहनो , अपनी नज़रिया बरसे रे प्यास हमारी ऐसी , भूख हमारी ऐसी , शराफ़त है बेमानी दे दो रे ! दे दो रे ! दे दो रे ! शालू , शालू की नादानी , टेस्ट जलेबी बाई का और अनारकली की जवानी शर्म तुम्हारा गहना है , इसलिये कम पहना है , फ़िलिम ड़िरेक्टर कहते हें , एक बटन कम रहना है , और अगर मुँह खोलें तो कहें करेक्टर ढीला है , कौन है ये , कौन है ये , क्या  है ये लीला , मर्दों की सब लीला , शीला

दास्ताँ-ए-IPL

वो सिकंदर ही दोस्तों कहलाता है , बाज़ी हार के जीतना जिसे आता है , निकलेंगे मैदान में जब भर के ज़ेब हम , हाथ की सफ़ाई का दिखला देंगे दम जो सब करते है मुरख वो क्यों हम तुम करें , युंही मेहनत करते करते काहे को हम मरें सबकी जेबें भरी हैं क्यों अपनी न भरें यहाँ के जो सिकंदर , खिलाड़ी नये पुराने इनकी ज़ेब के अंदर आओ मिल के कमाये मेरे यार , नही समझे है जो हमें तो क्या जाता है , सट्टेबाजी तो बुकी को आता है यहाँ के हम सिकंदर . . . बंदर . . . छुछुंदर , जेल के अंदर ! संत्री-मंत्री थैले भरते हैं, हम क्यों पीछे रहें हमाम के नंगों से . . . भला हम क्यों ड़रें IPL के हम हैं बंदर , बोर्ड़ पर बैठे असली धुरंधर,  कौन लेगा पंगा उनसे मेरे यार , नही समझे है तो तुम्हें हम समझाता है,  गरम रोटी पे हाथ बड़िया सिंकाता है,  बस किसी के हाथ लगेन मोबाईल नम्बर यहाँ के हम सिकंदर . . .  बंदर . . . छुछुंदर , ( "जो जीता वही सिकंदर के गाने" की तर्ज़ पर लिखा और IPL/ BCCI और Cricket में चल रहे बेढ्ंगे खेल को समझने की एक कोशिश) स्टार प्लस के ड़ांस शो को promote करने के लिये कर

IPL

मैच मैच न रहा , कैच - कैच न रहा ,  IPL हमें तेरा एतबार न रहा , एतबार न रहा ओक्शन के वक्त हुनर को सिक्कों से तौलते , वो तुम न थे तौ कौन था तुम्हीं तो थे , मैच बाद पार्टियों में खिलाड़ियों से खेलते वो कौन थे , वो कौन थी , किसे पता नशे की रात ढल गयी , आगे की किसे पता खेलदार   हमें तेरा एतबार न रहा . . एक जगह खड़े खड़े आसान कैच छोड़ते वो तुम न थे तौ कौन था तुम्ही तो थे रनआउट होने के लिये , थोड़ा धीरे दौड़ते वो तुम न थे तौ कौन था तुम्ही तो थे सारे भेद खुल गये राज़दार न रहा बी.सी.सी.आई. हमें तेरा एतबार न रहा, एतबार न रहा,  बॉल-बॉल न रही, बैट बैट न रहा ( "दोस्त दोस्त न रहा ..." की तर्ज़ पर लिखा और IPL/ BCCI और Cricket में चल रहे बेढ्ंगे खेल को समझने की एक कोशिश)

एक सफ़र मुसाफ़िर होने का!

क्या मैं तैयार हूँ , जाने को , या फ़सा हूँ , अपनी जिंदगी भुनाने को , हाथ आई चीज़ कौन छोड़े , वो भी मुफ़्त की , बहती गंगा में सब हाथ धो रहे हैं , आज़ - कल बड़ी खुशी से खो रहे हैं हालत पतली है , अपने सर न आये , हो कहीं भी पेशी , हो जायेंगे खड़े सर झुकाये! पर वो दिन किस ने देखा है? अभी तो बस इकट्ठे कर लो , दिन पे दिन , साल पे साल , और उपर से ऐंठ कि उम्र बड़ी है , आपको देख कर चली घड़ी है , पर सच की किसको पड़ी है , सब अपनी मंज़िलों के बीमार हैं , क्या मज़ाल कोई कह दे कि जाने को तैयार हैं , सारी मेहनत खुद को बहकाने की , खुदा आपको लंबी उम्र दराज़ करे , जुग - जुग जियो , साल कि दिन हों पचास हज़ार , क्यों नहीं कोई दुआ देता कि आप कि मौत आप को इंतज़ार न कराये , और बोले भी कौन क्योंकि मौत बदनाम है , बेवज़ह , अगर सोचें तो , सच्ची है , ईमानदार है , और सच कहें तो यही है एक जिसको जिंदगी से सच्चा प्यार है , कभी साथ नहीं छोड़ती , मुँह नहीं मोड़ती , खैर जाने दीजिये ,  बात जिंदगी और मौत की नहीं , हमारी है , मेरी है , क्या