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छान-बीन?

रिश्ते चुनते हैं‌ हम को, कि हम रिश्तों को चुनते हैं,
रिश्ते बुनते हैं हम को, कि हम रिश्तों को बुनते हैं!

अपने बनते हैं युँ ही, कि युँही बनते हैं अपने हैं,
सुनते हैं जो 
हम कहते, या कहते हैं हम सुनते हैं


नाम किसका है और क्यों खुद को सामान करते हैं,
कुछ खबर है आप को युँ खुद को दुकान करते हैं!

नज़र इरादों को जगाती है, उम्मीद अभी बाकी है, युँ
छोड़िये फ़िक्र करना तनिक भी, अभी बेबसी काफ़ी है!


लंबी उमर है क्या जल्दी है नाउम्मीदगी की, 
दो-चार दिन जरा कोशिश के लुत्फ़ ले लो!

उम्मीद पलती है गहरे अंधेरे कोनों में,
क्या रखा है मुलायम से बिछौनो में!

बुरे हालात हैं पर भी मुस्कराते हैं,
जानते हैं ये सच ही झूठी बातें हैं!


खामोशी सुनती नहीं, आवाज़ों ने बहरा कर दिया,
मेरी सोच ने ही, मेरी आज़ादी पर पहरा कर दिया! 

वही दिखेगा सामने जो नज़रिया कर लिया
आंखें बंद की और अंधेरों को गहरा कर लिया!


इरादे सफ़र को निकले हैं, रस्ते इबारत करने, 
मुश्किलें हों भी तो रंग तजुर्बों के नफ़ासत करने!

इबारत की इज़ाजत है, या की कोई हिमाकत है,
अधुरे रह गये सफ़र और बस थोड़ी हरारत है!

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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

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