जिंदगी
बच्चों का कोई खेल नहीं है,
हमने
देखा है, तजुर्बे
का कोई मेल नहीं है,
आदर
से सर झुकाओ,
बेफ़ज़ूल
सवालों पर ताला लगाओ,
जमीं
पर तुम्हारे पैर नहीं हैं,
. . .खामोश!
मेरा सच कुछ
और है,
पर
मेरे इरादे मासूम है,
और मेरी आवाज़ में कहाँ वो जोर है,
और मेरी आवाज़ में कहाँ वो जोर है,
ज्यादातर
बचपन इन बातों में दल जाते
हैं,
कुछ
फ़िर भी इन तंगसोची से परे आते
हैं,
और
फ़िर ये शिकायत कि दुनिया ठीक
नही चल रही
भूल
गये बच्चे
अब बड़े है, आपकी तमाम कोशिशों के बावजूद,
अब बड़े है, आपकी तमाम कोशिशों के बावजूद,
और
बड़े मान नहीं करते,
अपने
हर फ़र्ज़ का दाम करते हैं,
नहीं
यकीन तो खुद को सुन लो,
"कितना
त्याग किया तुम्हें बड़ा करने
में"
"बुखार
तो रात रात ठंड़ी पट्टी लगाई
थी"
"और
कंधे पर धरकर झांकी दिखाई थी"
“और
मां ने नौ महीने पेट में रखा
था"
जैसे
बच्चे नहीं कोई बैंक का खाता
हैं,
अभी जमा किया बाद में सूद आता है!
अभी जमा किया बाद में सूद आता है!
क्या आपका अपने बच्चों से यही नाता है??
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें