मर्दों
की दुनिया सारी, घूरने
की है बीमारी, शरम
कभी न आनी
माने
न माने कोई ,भाई
– भतिज़ों की दुनिया बड़ी सुहानी
माँ-
बहनें घर
में बैठें, बाहर
कुछ और कहानी
अब
दिल करता है हौले हौले से किसी
कि भी गले पड़ जायें,
रिश्तों
का मर्दों को बंधन क्या, बस
अपना प्यार जतायें
माँ
कसम, माँ
कसम, माँ
कसम
my name is शीला,
शीला
की बदनामी,
रज़िया
गुंड़ो में फ़ंस गयी और
मुन्नी
की नादानी
मुझे
फ़ोलो फ़ोलो करते हें
और
जब में नज़र फ़ेरुं, बस
ताने कसते हें,
बेशरम,
बदतमीज़ मरदुए
हाय
रे ऐसे चेपू हम,
फ़ेविकोल
बन चिपकें रे
कितने
तुम कपड़े पहनो, अपनी
नज़रिया बरसे रे
प्यास
हमारी ऐसी, भूख
हमारी ऐसी, शराफ़त
है बेमानी
दे
दो रे! दे
दो रे! दे
दो रे!
शालू,
शालू की
नादानी,
टेस्ट
जलेबी बाई का और अनारकली की
जवानी
शर्म
तुम्हारा गहना है, इसलिये
कम पहना है,
फ़िलिम
ड़िरेक्टर कहते हें, एक
बटन कम रहना है,
और
अगर मुँह खोलें तो कहें करेक्टर
ढीला है,
लीला,
मर्दों की
सब लीला,
शीला,
मुन्नी,
शालू,
रज़िया,
सब पर है निशाना.
भैया
मेरे राखी के बंधन को निभाना,
वो
भी किसी की बहन होगी, घर
बाहर भुल न जाना!
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