क्या
मैं तैयार हूँ,
जाने
को,
या
फ़सा हूँ, अपनी
जिंदगी भुनाने को,
हाथ
आई चीज़ कौन छोड़े,
वो
भी मुफ़्त की,
आज़-कल
बड़ी खुशी से खो रहे हैं
हालत
पतली है,
अपने
सर न आये,
हो
कहीं भी पेशी,
हो
जायेंगे खड़े सर झुकाये!
पर
वो दिन किस ने देखा है?
अभी
तो बस इकट्ठे कर लो,
दिन
पे दिन, साल
पे साल,
और
उपर से ऐंठ कि उम्र बड़ी है,
आपको
देख कर चली घड़ी है,
पर
सच की किसको पड़ी है,
सब
अपनी मंज़िलों के बीमार हैं,
क्या
मज़ाल कोई कह दे
कि
जाने को तैयार हैं,
खुदा
आपको लंबी उम्र दराज़ करे,
जुग-जुग
जियो,
साल
कि दिन हों पचास हज़ार,
क्यों
नहीं कोई दुआ देता कि
आप
कि मौत आप को इंतज़ार न कराये,
और
बोले भी कौन क्योंकि मौत बदनाम
है,
बेवज़ह,
अगर सोचें
तो,
सच्ची
है, ईमानदार
है, और
सच कहें तो
यही
है एक जिसको जिंदगी से सच्चा
प्यार है,
कभी
साथ नहीं छोड़ती, मुँह
नहीं मोड़ती,
खैर
जाने दीजिये,
बात जिंदगी और मौत की नहीं,
बात जिंदगी और मौत की नहीं,
क्या
मैं तैयार हूँ?
जाने
को,
कोई
काम बचा है - हूँ,
दिल
बहलाने को ये ख्याल अच्छा है,
मुरख,
काम
हमारा पेट्रोल है, हम
काम के नहीं,
किसी
और इंजन को मिल जायेगा,
और
मेरे अपने ??
क्यों
मौत से रिश्ते बदल जाते हैं
क्या?
क्या
होगा,
नये
रस्ते होंगे,
नये
वास्ते होंगे,
भूल
नहीं पायेंगे तो याद रखना और
भूल
जाओ तो. . . .
अगर
ये मेरे मरने का ड़र है,
तो
लानत है मैं जिया ही कहाँ?
और
जो दुनिया बदलने की ठानी है?
ये
तो सरासर बेईमानी है,
कॉमरेड़
इंकलाब
के साथ गद्दारी ,
इसकी
सिर्फ़ एक ही सज़ा है,
मौत,
:-)
चलिये
ये भी खूब रही,
एक
तरफ़ कुँआ और एक और खाई,
वैसे
चुल्लू भर पानी तो मेरे अंदर
भी मिल जायेगा
मैं
अपने आप को बदल रहा हूँ,
मेरी
अपनी आग है, और
मैं जल रहा हूँ,
पर
सोना बनने का लालच नहीं,
रास्ता
है और मैं चल रहा हूँ,
कोई
जल्दी नहीं है,
पर
ये मुसाफ़िर होने का सफ़र है,
और
मैं जाने को तैयार हूँ!
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