तलवारों की ही धार हज़म करते हैं,
आखिर किस बात का इतना गम है,
जो सुन लिया जिंदगी से जरा बेचारा,
वो मिट्टी कि सुनो पैर नीचे दबी है,
और वो फ़ूल जो बेमौत मुस्कराये है! . . . तुम्हारे हाथों में!
आज़ हम सात अरब हैं कुछ फ़रक है,
क्या मिठाई है और कौन सा वरक है?
किस्मत किस्मत का कितना फ़रक् है
कोई जी के नरक है, कोई जाके नरक है!
युँ जिंदा उऩ्हें उनके जख्म करते हैं!
उम्मीद ही को अपनी कसम करते हैं,
अपनी ही मुश्किलों को तंग करते हैं!
सच हो गये गुमशुदा पैसों के गलियारे में,
खबरें पकती हैं तिज़ोरी के अंधियारों में!
आँखे भींच ली कौन कहे अंधियारे में,
खबर आयेगी तब सोचेंगे इस बारे में!
फ़िज़ूल सब बोलियां आपकी, ये बिकने वाली चीज़ नहीं,
वो कोई और दौर था, अब सच को कोई अज़ीज़ नहीं!
वो जायके और थे जब हिम्मतों के दौर थे,
खुली हवाओं के अब कोई वैसे मरीज़ नहीं!
बड़ी शान से सब अपना धरम होते हैं,
किसको फ़ुर्सत देखे, क्या करम होते हैं!
झुका दिये सर जहां पत्थरों में रंग देखे
बड़े संगीन बुतपरस्तों के भरम होते हैं!
खुली दुकान है मुसाफ़िर सामान है,
कीमत अजनबी मेहमान है,
लगा लीजिये आपको जो मोल लगे,
ये सौदा बड़ा आसान है!
काम आसान हो कि चंद दरवाज़े खुले रखिये,
अपने लूटेरों के लिये दिल में थोड़ी जगह रखिये
क्या फ़रक पड़ता है कि तुम खुश हो,
जिंदगी समझने लगे तो क्या तीर मारा,
ये कहो कि चलते हुए कंकड़ चुभते हैं,
और नज़र में कोई पौधे हैं जो उगते हैं!
उम्मीद ही को अपनी कसम करते हैं,
अपनी ही मुश्किलों को तंग करते हैं!
सच हो गये गुमशुदा पैसों के गलियारे में,
खबरें पकती हैं तिज़ोरी के अंधियारों में!
आँखे भींच ली कौन कहे अंधियारे में,
खबर आयेगी तब सोचेंगे इस बारे में!
फ़िज़ूल सब बोलियां आपकी, ये बिकने वाली चीज़ नहीं,
वो कोई और दौर था, अब सच को कोई अज़ीज़ नहीं!
वो जायके और थे जब हिम्मतों के दौर थे,
खुली हवाओं के अब कोई वैसे मरीज़ नहीं!
बड़ी शान से सब अपना धरम होते हैं,
किसको फ़ुर्सत देखे, क्या करम होते हैं!
झुका दिये सर जहां पत्थरों में रंग देखे
बड़े संगीन बुतपरस्तों के भरम होते हैं!
खुली दुकान है मुसाफ़िर सामान है,
कीमत अजनबी मेहमान है,
लगा लीजिये आपको जो मोल लगे,
ये सौदा बड़ा आसान है!
काम आसान हो कि चंद दरवाज़े खुले रखिये,
अपने लूटेरों के लिये दिल में थोड़ी जगह रखिये
क्या फ़रक पड़ता है कि तुम खुश हो,
जिंदगी समझने लगे तो क्या तीर मारा,
ये कहो कि चलते हुए कंकड़ चुभते हैं,
और नज़र में कोई पौधे हैं जो उगते हैं!
आखिर किस बात का इतना गम है,
जो सुन लिया जिंदगी से जरा बेचारा,
वो मिट्टी कि सुनो पैर नीचे दबी है,
और वो फ़ूल जो बेमौत मुस्कराये है! . . . तुम्हारे हाथों में!
आज़ हम सात अरब हैं कुछ फ़रक है,
क्या मिठाई है और कौन सा वरक है?
किस्मत किस्मत का कितना फ़रक् है
कोई जी के नरक है, कोई जाके नरक है!
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