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संदेश

अगस्त, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हम आप आज कल!

वो ज़हर जो हमको क़ातिल करता है, रामबाण है, अचूक असर करता है! कौन है जो दिल ये नफ़रत भरता है? आप ही आइए जहां हम मिलते हैं ! अलग चाल है सबकी और चलते हैं!! रिश्ते क्यों हम को अलग करते हैं? जो भी ख़बर मिली वो ही सच है? बुरी है बात और किसी के सर है! डर और नफ़रत आपके घर है! किन रंगों से आईने रंगवाए हैं? क्यों नफ़रत नज़र नहीं आए है? सड़क पर मार दिया ये न्याय है? रामराज्य, राम नाम, आसाराम, बाबाराम, घोर कलयुग है और ये सब राम के काम? सोच, तर्क, विज्ञान का तो काम तमाम! धर्म का धंधा, खरीददारी चंदा, राम नाम में बढ़े फायदे में बंदा, घटिया नीयत और काम गंदा!

#हम_देखेंगे !

बीमारी फैली है नाम महामारी है! सुप्रीम कोर्ट को दो ट्वीट भारी हैं? सवालों के दायरे में सब को रखिए, सवालों के बाहर सब झूठ है बचिए! सरकार, न्यायपालिका, मीडिया, पुलिस, लेफ्ट राइट लेफ्ट राइट लेफ्ट राइट! एक चाल है सबकी क्या कमाल है? पहले सरकार का फैंसला, फिर जनता का विरोध फिर सुप्रीम कोर्ट फिर जैसे का तैसा! क्रोनोलॉजी समझिए! आप के लिए विकास क्या है? पूंजीवाद के सिवा किसको जगह है?  और न्याय किसके साथ हुआ है? बड़ा पेचीदा मामला है, न्याय मूर्ति हो गए हैं  करें तो क्या करें?  उनकी मनोस्तिथि ... जो सरकार से मांग है वही न्याय व्यवस्था से भी? एक ही थैली के चट्टे बट्टे, पुरानी कहावत थी कभी? 'न्यायपालिका पर भरोसा', ये कहना मजबूरी सा बन रहा है? न्याय का काम आजकल कुछ ऐसा चल रहा है!

संविधान और विधान!

और निसर्ग से हमें क्या संदेश हैं? जैसी मर्ज़ी यही हमारे आवेश हैं? घमंड है सभ्यता का, बड़ा तैश है! आने वाले कल के बच्चों को क्या सिखाएं? बेहतर नहीं, के वो इस दुनिया न आएं? संविधान की जरूरत है खूब सवाल कीजिए, गद्दार है जो कहे,"ख़बरदार! जो मज़ाल कीजिए"! नाइंसाफी मंज़ूर हो अगर ये देशभक्ति है? तो एक नाम मेरा भी लिस्ट में जोड़ दीजिए! देशद्रोहीयों की ! इंटरनेट, बुलेट ट्रेन, ई_कैश, उ कैश, ये विकास है? या सोच समझ चेतना संवेदना कितनी अपने पास है? फिक्र नहीं इसकी कि ख़ाक हुए जाते हैं, सच है साथ सो बेबाक़ हुए जाते हैं! क्या आप को नफ़रत के बाज़ार नज़र आते हैं? सच लगते हैं आपको संदेश जो व्हाट्सएप से आते हैं? इंसानी हुक़ूक़ की बात कोई जंग नहीं है, आज की दुनिया को ये सोच तंग नहीं है?

#PrashantBhushan

चुप बैठ जाएं ये मानकर की सब सही है? आख़िर कौन हैं जिनकी मति मारी गई है? एक आवाज़ अगर आपका यकीन हो जाए?  क्या न्याय देंगे जो यूँ मुतमइन हो जाएं? कब हम अपने अंदर झांक कर देखेंगे? कितना ज़हर है और कहां उसे फेकेंगे? क्या बिक गया है और क्या अभी बाज़ार है?  अपनी कीमत बताईए बड़ी रईस सरकार है! पीएम केयर फंड्स के हक़ में फैसला है? कहाँ जा रहा है ये पैसा और किसका है? आजकल आपके क्या एहसास हैं? सच, अधिकार, सवाल कोई ख़ास हैं? क्या हम डर के गुलाम हो गए हैं,  जो सामने है उससे अंजान? पहचान वो जो आपको बेबाक करे,  किसी के हक़ के लिए आवाज़ करे!!

#HumDekhenge

रामराज्य का यही न्याय है, किस के कहे सुने से गुनाह है? अपने ही हक़ में फ़ैसला करेंगे, योर हॉनर, इंसाफ़ क्या करेंगे? ये सरकार दीमक है, किसको किसको चाटेगी? मीडिया, अफसरशाही, न्यायपालिका सफ़ाचट! सरकार का न्याय है, न्याय मूर्ति है? फ़ासीवाद की देखिए खूबसूरती है? माय लॉर्ड, योर हॉनर, जी हजूरी है क्या? कोई सवाल न करो ये मजबूरी है क्या? सही गलत कुछ हो, हमें ठीक नहीं लगा? रूठ गए हैं जस्टिस या कर रहे हैं फैंसला? सच को ख़ुद की वक़ालत करनी पड़े? ऐसी जहालत के दौर कैसे आ गए? लाखों मजबूर थे, मजदूर थे, घर से दूर थे, पर सरकार, न्यायपालिका साथ जरूर थे! सच की बात अगर यूँ गुनाह हो जाए? गोया गुनाह, न्याय की पनाह हो जाए!

आज़ादी के गुलाम!

किसकी मज़ाल की आज़ादी पर सवाल करे, पुलिस, अफसर, जज, पत्रकार सब साथ हैं! कश्मीर से आज़ाद हैं? कश्मीर में आज़ाद हैं?  कश्मीर के आज़ाद हैं? या क्या फ़र्क पड़ता है? भारत की सरकार आज पूरी आज़ाद है,  जिम्मेदारी से, जवाबदेही से, रामकृपा! ऐसी भी क्या आज़ादी के ख़ामोश बैठे हैं,  सब जानते समझते बोलती बंद हो गई? सुप्रीम कोर्ट के जज हैं, या कोई दरबारी?  किस को न्याय है किसकी तरफ़दारी? सहूलियत की जंजीरें कैसे तोड़ दें,  आज़ादी के लिए कैसे मस्ती छोड़ दें! खामोशी आज़ाद है, सवालों को कैद है,  क़ातिल आज़ाद है बेगुनाह सूली चढ़ें! चुप रहिए कि आप आज़ाद हैं,  बोलने वाले सब बरबाद हैं!

रामराज्य सरकार!

बड़े फ़ायदे के नफ़रत के कारोबार हैं, सुना है आज़कल वो सरकार हैं! राम के नाम की सरकार हो गई, संविधान की बात हे'हराम हो गई! धर्म गिरा है या निचले कर्म हो गए हैं? इस दौर में ख़ासे बेशरम हो गए हैं अच्छे खासे आजकल राम हो गए, धर्म के धंदे आजकल तमाम हो गए! हो कोई धर्म राम नाम सत्य करते हैं, धार्मिक गुंडे कहाँ किसी से डरते हैं! क़ैद अब सत्ता का हथियार है, ये नहीं लोकतंत्र की सरकार है! सत्ता जब किसी को गुनहगार करती है, रोशनी की आड़ में अंधकार करती है! बंदूक आतंक है बंदूकधारी आतंकवादी,  वर्दी को सौ खून माफ़, ये कैसी तरफ़दारी?

दूर के पास!

बिछड़े नहीं पर दूर तो हैं, इन दिनों कुछ मजबूर तो हैं! सिर्फ जरूरत की बात नहीं  एक दूजे को जरूर जो हैं! चौबिसों घन्टे की मुलाकातें  ख़ासे हम मसरूफ जो हैं! उनसे ही हैं बातें सारी कैसे कह दें दूर से हैं? हम कहते वो हूर से हैं, हम उनको लंगूर से हैं! वो ही नाइत्तफाकी हर बात यूँ एक दूजे के मंजूर से हैं! इत ना तज़ुर्बा है एक दूजे का, दूरियों से कहाँ उनसे दूर से हैं? बात करने की गुज़रिशें उनकी हमको कब बोली के शऊर हैं? तसल्ली है सो वो अपनी जगह, नज़दीक और भी पहलू हुज़ूर हैं! होने से मेरे मौसम नहीं बदलते, जरूरत में हवा का झोंका जरूर हैं!

गुनाह को पनाह!

  कितने हम तरक्क़ी से ग़ुमराह हुए हैं, आँख सामने हमारे सारे गुनाह हुए हैं! भगवान के नाम पर इंसानियत खारिज़ है, भक्ति में कैसे कैसे आज गुनाह हुए हैं? नफ़रत ने सबको एकराय कर दिया, खुलेआम सड़क पर गुनाह हुए हैं! मार देने को अब इंसाफ कहतें हैं, इंसाफ के नाम पर गुनाह हुए हैं! कानून बिक गया ओ इंसाफ डर गया, बढ़ी ठाट से इन दिनों गुनाह हुए हैं! मक्खियों माफ़िक भिनभिनाते हैं अंधभक्त, शाह_ई इशारों से आजकल गुनाह हुए हैं! लाखों चुप्पियों को कैसे शराफ़त कह दें ! चुप हैं इसलिए क्योंकि गुनाह हुआ है! मस्ज़िद को तोड़ कर मंदिर बनाते हैं, बड़ा धार्मिक इनदिनों गुनाह हुआ है!

365 दिन, कश्मीर बिन!

365 दिन कश्मीर कैद में है, नज़रबंद? और आपको ज़िंदगी से कोई शिकायत? 365 दिन कश्मीर कैद में है, नज़रबंद, देश में चलती राममंदिर की कवायत! 365 दिन कश्मीर कैद में है, नज़रबंद, ये  लोकतंत्र पर भद्दा पैबंद! 365 दिन कश्मीर कैद में है, नज़रबंद, TV पर देखा आपने, होकर तालाबंद! 365 दिन कश्मीर कैद में है, नज़रबंद, और आपको अच्छे दिनों की ख़बर होगी? 365 दिन कश्मीर कैद में है, नज़रबंद, फेक एनकाउंटर से आप बहुत खुश होंगे? 365 दिन कश्मीर कैद में है, नज़रबंद, इस बात पर कब दिए जलाएंगे आप? 365 दिन कश्मीर कैद में है, नज़रबंद, और आपके बच्चे क्या खेल रहे हैं?  आजकल?। 365 दिन कश्मीर कैद में है, नज़रबंद, आप क्या अब भी हिंदुत्व के गुलाम हैं?

टाईमपास!

वक्त टूट कर बिखरा पड़ा है, कहीं छोटा कहीं बड़ा है, 'तर', कहीं प्यासा पड़ा है, आख़िर में चिकना घड़ा है, कोई भी लम्हा कब तड़प उठता है, कोई पल मुँह बाएं खड़ा है, कोई घड़ी, हाथ से फिसलती है, कोई सदी बन टिकी है, कोई इंतज़ार उम्र होता है, कोई पलक झपकते गुम, और इस खेल में कहाँ हैं हम? कभी वक्त फ़ायदा है, कभी सारी मुसीबतों की जड़, कभी हाथ नहीं आता, समय, कभी मौसम बन छा जाता है, किसी को रास नहीं, किसी को भा जाता है? किसी के गले तलवार, किसी के लिए घुड़सवार, किसी के पास समय नहीं, बिल्कुल भी, वक्त किसी का बचा नहीं, हमें कुछ हो, समय का क्या जाता है, बेशर्म! वही अपने रास्ते चला, वक्त बहुरूपिया है, हर पल, घड़ी, लम्हा युग, काल,  बदलता है, फिर भी, रुका है किसी के लिए, किसी को लगे  चलता है! बदल रहे हैं आप, समय को, या समय आपको बदलता है? बात गहरी है, और टाईमपास भी, है आपके पास? टाईम?

एक कतरा समंदर!

जो भी है मेरे अंदर है, एक कतरा, एक समंदर है! कतरा एक-एक, एक मंज़र है नज़र में आपकी मंतर है! वो मंतर जो छूमंतर है! मेरे रस्तों का तंतर है! रस्तों रस्तों का अंतर है, अंत मिटा सब अंतर है! अंत भी एक निरंतर है, जीवन जो जंतर मंतर है! जीने मरने में फर्क क्या? सब चार दिन के अंदर है! एक लम्हे सारी उम्र बसी, दिन चार, चार समंदर हैं! एक समंदर तुम, एक मैं, और सफ़र सात समंदर ये! हमसफ़र रास्ता भी हैं, सफ़र ऐसे मुक़म्मल हैं! बिन ख़ामी कौन मुक़म्मल? हर कतरा एक समंदर है!

रिश्ते!

रिश्ते सारे नाप बन गए,  कैसे ये हम आप बन गए? कहने को सब साथ बन गए, गए तो खाली हाथ बन गए? लेनदेन से जाँच रहे सब, कैसे ताल्लुकात बन गए? अपनी ज़िद्द के पक्के सब, कितने इल्ज़ामात बन गए? हाथ खड़े कर दिए हमने, यूँ नामुमकिन बात बन गए! ख़ामोशी आवाज़ बन गई, और सब चुपचाप सुन गए! कैसे ये हालात बन गए? आप मेरे जज़्बात बन गए? न मानी बात बेमानी हुई, मानी क्यों इसबात बन गए? (मानी - accepted ; मानी - meaning; इसबात - certain, proof) नज़दीकी में जात बन गए, खून की घटिया बात बन गए